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________________ आत्म-कथा: भाग ४ "मिस्त्रियोंको जगानेकी और उनसे मदद मांगनेकी मेरी हिम्मत नहीं होती। और हमारे जो लोग थक गये हैं उन्हें भी कैसे कहूं ? " " यह काम मेरे जिम्मे रहा । " मैंने कहा । "तब तो मुमकिन है कि सफलता मिल जाय ।” मैंने मिस्त्रियोंको जगाया और उनकी मदद मांगी। मुझे उनकी मिन्नतखुशायद नहीं करनी पड़ी। उन्होंने कहा-- "वाह ! ऐसे वक्त हम यदि काम न पायें तो हम आदमी ही क्या ? आप आराम कीजिए, हम लोग पहिया चला देंगे। हमें इसमें कुछ मिहनत नहीं है ।" और इधर छारेखानेके लोग तैयार थे ही। अब तो वेस्टके हर्षकी सीमा न रही। वह काम करते-करते भजन गाने लगे। घोड़ा चलाने में मैंने भी मिस्त्रियोंका साथ दिया और दूसरे लोग भी बारी-बारीसे चलाने लगे। साथ ही पन्ने भी छरने लगे । सुबहके सात बजे होंगे। मैंने देखा कि अभी बहुत काम बाकी पड़ा है। मैंने वेस्टसे कहा-- “अब हम इंजिनियरको क्यों न जगा में ? अब दिनकी रोशनी में वह और सिर खपाकर देखे तो अच्छा हो। अगर एंजिन चल जाव तो अपना काम समयपर पूरा हो सकता है ।" वेस्टने इंजिनियरको जगाया। वह उठ खड़ा हुआ और एंजिनके कमरेमें गया। शुरू करते ही एंजिन चल निकला । प्रेस हर्षनादसे गुंज उठा। सव वाहने लगे, "यह कैसे हो गया ? रातको इतनी मिहनत करनेपर भी नहीं चला और अब हाथ लगते ही इस तरह चल पड़ा, मानो कुछ बिगड़ा ही न था।" । वेस्टने या इंजिनियरने जवाब दिया-- "इसका उत्तर देना कठिन है। ऐसा जान पड़ता है, मानो यंत्र भी हमारी तरह आराम चाहते हैं। कभी-कभी तो उनकी हालत ऐसी ही देखी जाती है ।" . मैंने तो यह माना कि एंजिनका न चलना हमारी परीक्षा थी और ऐन मौकेपर उसका चल जाना हमारी शुद्ध मिहनतका शुभ फल था। - इसका परिणाम यह हुआ कि 'इंडियन ओपीनियन' नियत समयपर स्टेशन पहुंच गया और हम सब निश्चित हुए। हमारे इस आग्रहका फल यह हुआ कि 'इंडियन ओपीनियम'की नियमितताकी छाप लोगोंके दिलपर पड़ो और फिनिक्समें मेहनतका वातावरण
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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