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________________ अध्याय २० : पहली रात ३०७ था । और यदि बड़ी कल अड़ जाय तो ऐसी सुविधा वहां नहीं थी कि इतने बड़े आकारका पत्र तुरंत छापा जा सके। इससे पत्रके उस अंकके बंद रहनेका ही अंदेशा था। इस दिक्कतको दूर करनेके लिए अखवारका आकार छोटा कर दिया कि कठिनाई के समयपर छोटी कलको भी पांवसे चलाकर अखबार, थोड़े ही पत्नेका क्यों न हो, प्रकाशित हो सके । प्रारंभ काल में 'इंडियन ओपीनियन की प्रकाशन - तिथिकी अगली रातको सबको थोड़ा-बहुत जागरण करना ही पड़ता था । पत्रोंको भांजने में छोटे-बड़े सब लग जाते और रातको दस-बारह बजे यह काम खतम होता । परंतु पहली रात तो इस प्रकार की बीती जिसे कभी नहीं भूल सकते । पन्नोंका चौखटा तो मशीनपर कस गया, पर एंजिन अड़ गया; उसने चलनेसे इन्कार कर दिया । एंजिनको जमाने और चलानेके लिए एक इंजिनियर बुलाया गया था । उसने और वेस्टने खूब माथा पच्ची की ; पर एंजिन टस से मस न हुआ । तब सब चितामें अपना-सा मुंह लेकर बैठ गये । अंतको वेस्ट निराश होकर मेरे पास प्राये । उनकी प्रांखें प्रांसुनोंसे छलछला रही थीं । उन्होंने कहा, “अब आज तो एं जिनके चलने की आशा नहीं और इस सप्ताह हम अखबार समयपर न निकाल सकेंगे । LL 'अगर यही बात है तब तो अपना कुछ बस नहीं, पर इस तरह आंसू बहने की कोई यकता नहीं । और कुछ कोशिश कर सकते हों तो कर देखें । हां, वह हाथमे चलानेका पहिया जो हमारे पास रक्खा है, वह किस दिन काम श्रायेगा ? यह कहकर मैंने उन्हें श्राश्वासन दिया । [L वेस्टने कहा-' पर उस पहियेको चलानेवाले आदमी हमारे पास कहां हैं ? हम लोग जितने हैं उनसे यह नहीं चल सकता। उसे चलाने के लिए बारी-बारीसे चार-चार ग्रादमियोंकी जरूरत है। और इधर हम लोग थक भी 60 बढ़ई लोगोंका काम अभी पूरा नहीं हुआ था, इससे वे लोग अभी छापेखाने में ही सो रहे थे । उनकी तरफ इशारा करके मैंने कहा-- 'ये मिस्त्री लोग मौजूद हैं। इनकी मदद क्यों न लें ? और श्राजकी रातभर हम सब जागकर छापनेकी कोशिश करेंगे । बस इतना ही कर्तव्य हमारा और बाकी रह जाता है । "
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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