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________________ २४२ आत्म-कथा: भाग ३ पालनपुरको छोड़कर और सब जगह मैं यात्रियोंकी तरह धर्मशालामें या पंडोंके मकानपर ठहरा था। जहांतक मुझे याद है, इस यात्रामें रेल-किराये सहित इकत्तीस रूपये लगे थे। तीसरे दर्जेमें प्रवास करते हुए भी मैं अक्सर डाकनाड़ी में नहीं जाता था; क्योंकि मैं जानता था कि उसमें भीड़ ज्यादा होती है और तीसरे दर्जे के किरायेके हिसाबसे वहां पैसे भी अधिक देने पड़ते थे। मेरे लिए यह अड़चन भी थी ही। तीसरे दर्जे के डिब्बोंमें जो गंदगी और पाखानोंकी बुरी हालत इस समय है, वही पहले भी थी। शायद इन दिनों कुछ सुधार हो गया हो; पर तीसरे और पहले दर्जेकी सुविधाोंमें जो अंतर है वह इन दोंके किरायेके अंतरकी अपेक्षा बहुत अधिक मालूम हुआ। तीसरे दर्जे के यात्री तो मानो भेड़-बकरी होते हैं, और उनके बैठने के डिब्बे भी भेड़-बकरियोंके लायक होते हैं। यूरोपमें तो मैंने अपनी सारी यात्रा तीसरे दर्जेमें ही की थी; केवल अनुभवके लिए एक बार मैं पहले दर्जेमें बैठा था; पर वहां मुझे पहले और तीसरे दर्जे के बीच यहांका-सा अंतर न दिखाई दिया। दक्षिण अफ्रीकामें तो तीसरे दर्जे के डिब्बोंके मुसाफिर प्रायः हबशी लोग होते हैं; पर फिर भी वहांके तीसरे दर्जे के डिब्बोंमें अधिक सुविधा रहती है। कहीं-कहीं तो मुसाफिरोंके लिए तीसरे दर्जे के डिब्बोंमें सोनेका भी प्रबंध है, और बैठकोंपर गद्दी भी लगी रहती है। प्रत्येक खाने में बैठनेवाले यात्रियोंकी संख्याकी मर्यादा का पालन किया जाता है; पर यहां तो मुझे कभी ऐसा अनुभव नहीं हुआ कि यात्रियोंकी संख्याकी इस मर्यादाका पालन किया जाता हो । रेलवे-विभागकी इन असुविधाोंके अलावा यात्रियोंकी खराव आदतें सुघड़ यात्रियोंके लिए तीसरे दर्जेकी यात्राको दंड-स्वरूप बना देती हैं। चाहे जहां थूक दिया, जहां चाहा कचरा फेंक दिया, जब जीमें आया और जिस तरह चाहा . बीड़ी फूंकने लगे, पान और जरदा चबाकर जहां बैठे हों वहीं पिचकारी लगा दी, जूठन वहीं फर्श पर डाल दी, जोरजोरसे बातें करना, पास बैठे मनुष्पकी परवा न करना और गंदी भाषा वगैरा, यह तीसरे दर्जेका आम अनुभव है । तीसरे दर्जेकी मेरी १९२०ई०की यात्राके अनुभवमें और १९१५से १९१९ तकके दूसरी बारके अखंड अनुभवमें मुझे कोई विशेष अंतर नहीं दिखाई दिया। इस महा व्याधिका तो मुझे एक ही उपाय दिखाई देता है; वह यही कि
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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