SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय २० : काशीमें २४३ विक्षित समाज तीसरे दर्जेमें ही यात्रा करके इन लोगोंकी प्रादतें सुधारनेका यत्न करे । इसके सिवा रेलवेके अधिकारियोंको शिकायतें कर-करके तंग कर डालना, अपने लिए सुविधा प्राप्त करने या सुविधाकी रक्षाके लिए किसी प्रकारकी रिश्वत न देना और खिलाफकानून बातको बर्दाश्त न करना -- ये भी उपाय हैं । मेरा अनुभव है किं ऐसा करनेसे बहुत कुछ सुधार हो सकता है । अपनी बीमारी के कारण १९२० ई० से मुझे तीसरे दर्जेकी यात्रा प्रायः बंद करनी पड़ी है। इसपर मुझे सर्वदा दु:ख और लज्जा मालूम होती रहती हैं । यह तीसरे दर्जेकी यात्रा मुझे ऐसे समयपर बंद करनी पड़ी, जबकि तीसरे दर्जेके यात्रियोंकी कठिनाइयां दूर करनेका काम रास्तेपर प्राता जाता था । रेलवे और जहाजमें यात्रा करनेवाले गरीबोंको जो कष्ट और असुविधाएं होती हैं और जो उनकी निजी कुटेबोंके कारण और भी अधिक हो जाती हैं, साथ ही सरकारकी ओरसे विदेशी व्यापारियोंके लिए अनुचित सुविधाएं की जाती हैं, इत्यादि बातें हमारे सार्वजनिक जीवनमें एक स्वतंत्र और महत्त्वपूर्ण प्रश्न बन बैठी हैं और इसे हल करनेके लिए यदि एकदो दक्ष और उद्योगी सज्जन अपना सारा समय दे डालें तो वह अधिक नहीं होगा । अब तीसरे दर्जेकी यात्राकी चर्चा यहीं छोड़कर काशीके अनुभव सुनिए । सुबह मैं काशी उतरा । मैं किसी पंडेके यहां उतरना चाहता था। कई ब्राह्मणोंने मुझे चारों ओरसे घेर लिया। उनमेंसे जो मुझे साफ-सुथरा दिखाई दिया, उसके घर जाना मैंने पसंद किया । मेरी पसंदगी ठीक भी निकली । ब्राह्मणके प्रांगनम गाय बंधी थी । घर दुमंजिला था । ऊपर मुझे ठहराया। मैं यथाविधि गंगा स्नान करना चाहता था और तबतक निराहार रहना था । पंडाने सारी तैयारी कर दी। मैंने पहलेसे कह रक्खा था कि १ 1 ) से अधिक दक्षिणा मैं नहीं दे सकूंगा, इसलिए उसी योग्य तैयारी करना । पंडेने बिना किसी झगड़े के मेरी बात मान ली । कहा--" हम तो क्या गरीब और क्या अमीर, सवसे एकही - सी पूजा करवाते हैं । यजमान अपनी इच्छा और श्रद्धाके अनुसार जो दे दे, वही सही ।" मुझे ऐसा नहीं मालूम कि पंडेने पूजामें कोई कोर-कसर रक्खी हो। बारह बजे तक पूजा-स्नानसे निवृत्त होकर में काशीविश्वनाथके दर्शन करने गया; पर वहां जो कुछ देखा उससे मनमें बड़ा दुःख हुआ । सन् १८९१ ई० में जब मैं बंबई में वकालत करता था, एक दिन प्रार्थना
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy