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अध्याय २० : काशीमें
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मेरा यह विचार था कि काममें लगनेसे पहले मैं थोड़ा-बहुत सफर तीसरे दर्जे में करूं, जिसमे तीसरे दर्जेके मुसाफिरोंकी हालतको मैं जान लूं और दुःखोंको समझ लूं । गोखले के सामने मैंने अपना यह विचार रखखा । पहलेपहले तो उन्होंने इसे हंसी में टाल दिया; पर जब मैंने यह बताया कि इसमें मैंने क्या-क्या बातें सोच रक्खी हैं तब उन्होंने खुशीसे मेरी योजनाको स्वीकार किया । सबसे पहले मैंने काशी जाकर विदुषी ऐनीवेमेंट के दर्शन करना त किया । वह उस समय बीमार
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तीसरे दर्जे की यात्राके लिए मुझे नया साज-सामान जुटाना था । पीतलका एक डिब्बा गोखलेने खुद ही दिया और उसमें मेरे लिए मगदके लड्डू और पूरी रखवा दीं। बारह आनेका एक केनवासका बैग खरीदा। छाया ( पोरबंदरके नजदीक के एक गांव ) के ऊनका एक लंबा कोट बनवाया था। बैगमें यह कोट, तौलिया, कुरते और धोती रक्खे। प्रोढ़नेके लिए एक कंबल साथ लिया । इसके अलावा एक लोटा भी साथ रक्खा था । इतना सामान लेकर में रवाना हुआ । गोखले और डा० राय मुझे स्टेशन पहुंचाने आये । मैंने दोनोंसे अनुरोध किया था कि वे न यावें; पर उन्होंने एक न सुनी । तुम यदि पहले दर्जे में सफर करते तो मैं नहीं याता; पर अब तो जरूर चलूंगा । " —– गोखले बोले ।
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प्लेटफार्म पर जाते हुए गोखलेको तो किसीने न रोका। उन्होंने सिरपर अपनी रेशमी पगड़ी बांधी थी और धोती तथा कोट पहना था । डा० राय बंगाली लिवास में थे, इसलिए टिकट बाबूने अंदर आते हुए पहले तो रोका; पर गोखलेने कहा, “ मेरे मित्र हैं । " तब डा० राय भी अंदर आ सके। इस तरह दोनोंने मुझे विदा दी ।
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काशी में
यह सफर कलकत्तेसे राजकोट तकका था । इसमें काशी, आगरा, जयपुर और पालनपुर होते हुए राजकोट जाना था । इन स्थानोंको देख लेने के सिवा अधिक समय नहीं दे सकता था । हरएक जगह में एक-एक दिन रहा ।