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________________ आत्म-कथा : भाग ३ घसीट ले गई। मैंने सोचा कि जब मैं ब्रिटिश प्रजाकी हैसियतसे हकोंका मतालबा कर रहा हूं तो ब्रिटिश प्रजाकी हैसियतसे ब्रिटिश राज्यकी रक्षामें सहायक होना मेरा धर्म है। ब्रिटिश साम्राज्यमें हिंदुस्तानकी सब तरह उन्नति हो सकती है, यह उस समय मेरा मत था। इसलिए जितने साथी मिले उनको लेकर, अनेक मुसीबतोंका सामना करके, हमने घायलोंकी सेवा-शुश्रूषा करनेवाली एक टुकड़ी तैयार की। अबतक अंग्रेजोंकी ग्राम तौरपर यह धारणा थी कि यहांके हिंदुस्तानी जोखिमके कामोंमें नहीं पड़ते, स्वार्थके अलावा उन्हें और कुछ नहीं सूझता। इसलिए कितने ही अंग्रेज मित्रोंने मुझे निराशाजनक उत्तर दिये । अलबत्ता डा० बूथने खूब प्रोत्साहन दिया। उन्होंने हमें घायल योद्धाओंकी शुश्रूषा करनेकी तालीम दी। अपनी योग्यताके संबंधमें मैंने डाक्टरके प्रमाण-पत्र प्राप्त कर लिये। मि० लाटन तथा स्वर्गीय मि० ऐस्कंबने भी इस कामको पसंद किया। अंतको हमने सरकारसे प्रार्थना की कि हमें लड़ाईमें सेवा करनेका अवसर दिया जाय । जवाबमें सरकारने हमें धन्यवाद दिया; किंतु कहा कि आपकी सेवाकी इस समय आवश्यकता नहीं है । परंतु मैं ऐसे इन्कारसे खामोश होकर बैठ न गया । डा० बूथकी मदद लेकर उनके साथ मैं नेटालके बिशपसे मिला। हमारी टुकड़ीमें बहुतेरे ईसाई हिंदुस्तानी थे। बिशपको हमारी योजना बहुत पसंद आई और उन्होंने सहायता देनेका वचन दिया । __ इस बीच घटना-चक्र अपना काम कर रहा था। बोअरोंकी तैयारी, दृढ़ता, वीरता इत्यादि अंदाजसे अधिक तेजस्वी साबित हुई, जिसके फलस्वरूप सरकारको बहुतेरे रंगरूटोंकी जरूरत हुई, और अंतको हमारी प्रार्थना स्वीकृत हो गई। . इस टुकड़ीमें लगभग ग्यारह सौ लोग थे। उनमें लगभग चालीस मुखिया थे। कोई तीन सौ स्वतंत्र हिंदुस्तानी भरती हुए थे, और शेष गिरमिटिया थे। डा० बूथ भी हमारे साथ थे । टुकड़ीने अपना काम अच्छी तरह किया। यद्यपि उसका कार्यक्षेत्र लड़ाईके मैदानके बाहर था और रेडक्रास' चिह्न उनकी रक्षाके । रेडक्रासका अर्थ है लाल स्वस्तिक । युद्ध में इस चिह्नसे अंकित पट्टे शुश्रूषा करनेवालोंके बायें हाथमें बंधे रहते हैं और ऐसे नियम हैं
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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