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________________ अध्याय १० : बोअर युद्ध २१७ लिए लगा हुआ था, फिर भी ग्रावश्यकताके समय प्रत्यक्ष युद्ध क्षेत्रकी हदके अंदर भी काम करनेका अवसर हमें मिला । ऐसी जोखिममें न पड़नेका इकरार सरकारने अपनी इच्छासे हमारे साथ किया था; परंतु स्पियांकोपकी हारके बाद स्थिति बदली । इस कारण जनरल बुलरने संदेश भेजा कि यद्यपि आप जोखिमकी जगह काम करने के लिए बंधे हुए नहीं हैं, फिर भी यदि आप खतरेका सामना करके घायल सिपाहियों को अथवा अफसरोंको रणक्षेत्र से उठाकर डोलियोंमें ले जानेक लिए तैयार हो जायंगे तो सरकार आपका उपकार मानेगी। इधर हम तो जोखिम "उठाने के लिए तैयार ही थे । प्रतएव स्पियांकोपके युद्धके बाद हम गोली-बारूद की हदके अंदर भी काम करने लगे । इन दिनोंमें सबको कई बार बीस-पचीस मीलकी मंजिल तय करनी पड़ती थी । एक बार तो घायलोंको डोलीमें रखकर इतनी दूर चलना भी पड़ा था । जिन घायल योद्धाओं को हम उठाकर ले गये उनमें जनरल वुडगेट इत्यादि भी थे । छ: सप्ताह के अंत में हमारी टुकड़ीको रुखसत दी गई। स्थियांकोप और बालकांजी हारके बाद लेडी स्मिथ प्रादि-प्रादि स्थानोंको बोअरोंके घेरेसे तेजी के साथ मुक्त करनेका विचार ब्रिटिश सेनापतिने त्याग दिया और इंग्लैंड तथा हिंदुस्तान और सेना श्रनेकी राह देखने तथा धीरे-धीरे काम करनेका निश्चय किया था । हमारी उस छोटी-सी सेवाकी उस समय बहुत स्तुति हुई । उससे हिंदुस्तानियोंकी प्रतिष्ठा बढ़ी । 'आखिर हिंदुस्तानी हैं तो साम्राज्य के वारिस ही ' ऐसे गीत गाये गये । जनरल बुलरने अपने खरीतेमें हमारी टुकड़ी के कार्यकी प्रशंसा की। मुखियोंको लड़ाईके तमगे भी मिले । इसके फलस्वरूप हिंदुस्तानी अधिक संगठित हुए । मैं गिरमिटिया हिंदुस्तानियों के अधिक सम्पर्क में या सका । उनमें अधिक जाग्रति हुई और यह भावना अधिक दृढ़ हुई कि हिंदू, मुसलमान, ईसाई, मदरासी, पारसी, गुजराती, कि शत्रु भी उनको नुकसान नहीं पहुंचा सकते । अधिक तफसीलके लिए देखिए 'द० अ० के सत्याग्रहका इतिहास', खण्ड १, अध्याय ६ ।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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