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________________ अध्याय १० : बोअर युद्ध पायें । यह देखकर अदालत में खूब कहकहा मचा । २१५ " तुम्हारे सिरपर छछूंदर तो नहीं फिर गई ? मैंने कहा—“नहीं, मेरे काले सिरको गोरा नाई कैसे छू सकता है ? "" इस कारण जैसे-तैसे हाथ कटे बाल ही मुझे अधिक प्रिय हैं । इसे उत्तरसे मित्रोंको ग्राश्चर्य हुआ । सच पूछिए तो उस नाईका कसूर न था । यदि वह श्यामवर्ण लोगोंके बाल काटने लगता तो उसकी रोजी चली . जाती। हम भी तो कहां अछूतोंके बाल उच्च वर्णके नाइयोंसे कटवाने देते हैं ? इसका बदला मुझे दक्षिण अफ्रीका में एक बार नहीं, बहुत बार मिला है । और मेरा यह खयाल बना है कि यह हमारे ही दोषका फल है । इसलिए इस बातपर मुझे कभी रोष नहीं हुआ । स्वावलंबन और सादगीके मेरे इस शौकने आगे जाकर जो तीव्र स्वरूप ग्रहण किया, उसका वर्णन तो यथा प्रसंग होगा; परंतु उसका मूल पुराना था । उसके फलने-फूलने के लिए सिर्फ सिंचाईकी ग्रावश्यकता थी और वह अवसर अनायास ही मिल गया था । १० बोअर युद्ध १८९७ से ९९ ई० तक के जीवनके दूसरे कई अनुभवोंको छोड़कर ब बोर युद्धपर आता हूं । जब यह युद्ध छिड़ा तब मेरे मनोभाव बिलकुल बोरोंके पक्ष में थे; पर मैं यह मानता था कि ऐसी बातोंमें व्यक्तिगत विचारोंके अनुसार काम करनेका अधिकार अभी मुझे प्राप्त नहीं हुआ है । इस संबंध में जो मंथन मेरे हृदय में हुआ, उसका सूक्ष्म निरीक्षण मैंने 'दक्षिण का सत्याग्रहका इतिहास' में किया है; इसलिए यहां लिखने की या नहीं | first जाननेकी इच्छा हो वे उस पुस्तकको पढ़ लें ।' यहां तो इतना ही कहना काफी है कि ब्रिटिश राज्य के प्रति मेरी वफादारी मुझे उस युद्धमें योग देनेके लिए जबरदस्ती बृ यह पुस्तक 'सस्ता साहित्य मण्डल' से प्रकाशित हुई है PAU
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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