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________________ अध्याय २२ : धर्म-निरीक्षण १६१ पड़ा था । उसमें गिरमिटियोंको पूरा-पूरा योग देना पड़ा । कितनोंको ही गोलीका शिकार होना पड़ा। दस हजारसे ऊपर हिंदुस्तानियोंको जेल भोगनी पड़ी । पर अंत में सत्य विजयी हुआ । हिंदुस्तानियोंकी तपश्चर्याके रूपमें सत्य प्रत्यक्ष प्रकट हुआ । उसके लिए घटल श्रद्धा, धीरज और सतत आंदोलनकी श्रावश्यकता थी । यदि लोग हारकर बैठ जाते, कांग्रेस लड़ाईको भूल जाती, और करको अनिवार्य समझकर घुटने टेक देती, तो आजतक यह कर गिरमिटियांस लिया जाता होता और इसके पक्षका टीका सारे दक्षिण अकीका के भारतवासियोंको तथा सारे भारतवर्षको लगता । २२ धर्म-निरीक्षण इस प्रकार जो मैं लोक-सेवामें तल्लीन हो गया था, उसका कारण था आत्म-दर्शनकी अभिलाषा । यह समझकर कि सेवाके द्वारा ही ईश्वरकी पहचान हो सकती है, मैंने सेवा-धर्म स्वीकार किया था। मैं भारतकी सेवा करता था, क्योंकि वह मुझे सहज प्राप्त थी, उसमें मेरी रुचि थी । उसकी खोज मुझे न करनी पड़ी थी। मैं तो सफर करने, काठियावाड़के षड्यंत्रोंसे छूटने और ग्राजीविका प्राप्त करनेके लिए दक्षिण अफ्रीका गया था; पर पड़ गया ईश्वरकी खोज में-आत्म-दर्शन के प्रयत्न में । ईसाई - भाइयोंने मेरी जिज्ञासा बहुत तीव्र कर दी थी । वह किसी प्रकार शांत न हो सकती थी और मैं शांत होना चाहता भी तो ईसाई भाई-बहन ऐसा न होने देते; क्योंकि डरबनमें मि० स्पेंसर वाल्टनने, जोकि दक्षिण tara मिशनके मुखिया थे, मुझे खोज निकाला । मैं भी उनका एक कुटुंबीजनसा हो गया। इस संबंधका मूल है प्रिटोरियामें उनसे हुआ समागम । मि० वाल्टनका तर्ज कुछ और ही था। मुझे नहीं याद पड़ता कि उन्होंने कभी ईसाई . वनकी बात मुझसे कही हो; बल्कि उन्होंने तो अपना सारा जीवन खोलकर मेरे सामने रख दिया, अपना तमाम काम और हलचलके निरीक्षणका अवसर मुझे दे दिया। उनकी धर्म-पत्नी भी बड़ी नम्र, परंतु तेजस्वी थीं । मुझे इस दंपती की कार्य-पद्धति पसंद आती थी; परंतु हमारे अंदर जो
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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