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आत्म कथा : भाग २
३---यदि वापस न जाय और फिरसे मजदूरीका इकरार भी न करे तो उसे हर साल २५ पौंड कर देना चाहिए ।
इस तजवीजको मंजूर कराने के लिए सर हेनरी बीन्स तथा मि० मेसनका शिष्ट-मंडल हिंदुस्तान भेजा गया। उस समय लार्ड एल्गिन वायसराय थे। उन्होंने पच्चीस पौंडका कर नामंजूर कर दिया; पर यह मान लिया कि सिर्फ तीन पौंड कर लिया जाय । मुझे उस समय भी लगा और आज भी लगता है कि वायसरायने यह जबरदस्त भूल की थी। उन्होंने इस बात में हिंदुस्तानके हितका बिलकुल खयाल न किया। उनका यह धर्म कतई न था कि वह नेटालके गोरोंको इतनी सुविधा कर दें। यह भी तय हुआ कि तीन-चार वर्ष बाद ऐसे हिंदुस्तानीकी स्त्रीसे, उनके हर १६ वर्ष तथा उससे अधिक उनके प्रत्येक पुत्रसे और १३ वर्षकी तथा उससे अधिक उम्नबाली लड़कीसे भी कर लिया जाय । इस तरह पति-पत्नी
और दो बच्चोंके परिवारसे, जिसमें पतिको मुश्किलसे बहुत-से-बहुत १४ शिलिंग मासिक मिलते हों, १२ पौंड अर्थात् १८०) कर लेना महान् अत्याचार है। दुनियामें कहीं भी ऐसा कर ऐसी स्थितिबाले लोगोंसे नहीं लिया जाता था ।
___ इस करके विरोधमें घोर लड़ाई छिड़ी। यदि नेटाल-इंडियन कांग्रेस की ओरसे बिलकुल आवाज न उठी होती तो वायसराय शायद २५ पौंड भी मंजूर कर लेते। २५ पौंडके ३ पौंड होना भी, बिलकुल संभव है, कांग्रेसके आंदोलन का ही परिणाम हो । पर मेरे इस अंदाजमें भूल होना संभव है। संभव है, भारतसरकारने अपन-आप ही २५ पौंडको अस्वीकार कर दिया हो और बिना कांग्रेसके विरोधके ३ पौंडका कर स्वीकार कर लिया हो। फिर भी वह हिंदुस्तानके हितका तो भंग था ही। हिंदुस्तानके हित-रक्षककी हैसियतसे ऐसा अमानुष कर वायसरायको हरगिज न बैठाना चाहिए था ।
पच्चीससे तीन पौंड ( ३७५ रु०से ४५ रु० ) होनेके लिए कांग्रेस भला श्रेय भी क्या ले ? कांग्रेसको तो यही बात खली कि वह गिरमिटियोंके हितकी पूरी-पूरी रक्षा न कर सकी, और कांग्रेसने अपना यह निश्चय कि तीन पौंडका कर तो अवश्य रद्द हो जाना चाहिए, कभी ढीला न किया था। इस निश्चयको पूरा हुए आज २० वर्ष हो गए। उसमें अकेले नेटालके ही नहीं, बरन् सारे दक्षिण अफ्रिकाके भारतवासियोंको जूझना पड़ा था। इसमें गोखलेको भी निमित्त बनना