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________________ अध्याय ५ : दक्षिण अफ्रीकाकी तैयारी नहीं दे सकते।' ऐसा फैसला यदि किसी कानून-कायदेमें बलपर किया जाता हो तब तो पाशा की जा सकती है। पर यहां तो साहबकी इच्छा ही कानून था। आखिर मेरा जी ऊब उठा। इसी अवसरपर भाई साहबके पास पोरबंदरकी एक मेमन दूकानका संदेशा आया-- 'दक्षिण अफ्रीकामें हमारा व्यापार है। बड़ा कारोबार है । एक भारी मुकदमा चल रहा है। दावा चालीस हजार पौंडका है। बहुत दिनोंसे मामला चल रहा है। हमारी तरफसे अच्छे-से-अच्छे वकील बैरिस्टर हैं। यदि आप अपने भाईको हमारे यहां भेज दें तो हमें भी मदद मिलेगी और उसकी भी कुछ मदद हो जायगी। वह हमारा मामला वकीलोंको अच्छी तरह समझा सकेंगे। इसके सिवा नये देशकी यात्रा होगी और नये-नये लोगोंसे जान-पहचान होगी सो अलग।' भाई साहबने मुझसे जिक्र किया। मैं सारी बात अच्छी तरह न समझ सका। मैं यह न जान सका कि सिर्फ वकीलोंको समझानेका काम है या मुझे अदालतमें भी जाना पड़ेगा। पर मेरा जी ललचाया जरूर । दादा अब्दुल्लाके हिस्सेदार स्वर्गीय सेठ अब्दुलकरीम जवेरीकी मुलाकात भाईने कराई। सेठने कहा-- "तुमको बहुत मिहनत नहीं करनी पड़ेगी। बड़े-बड़े गोरोंसे हमारी दोस्ती है । उनसे तुम्हारा परिचय होगा। हमारी दूकानके काममें भी मदद कर सकोगे। हमारे यहां अंग्रेजी चिट्ठी-पत्री बहुत होती है। उसमें भी तुम्हारी मदद मिल सकेगी। तुम्हारे रहनेका प्रबंध हमारे ही बंगलेमें रहेगा। इस तरह तुमपर कुछ भी खर्च न पड़ेगा ।" मैंने पूछा-- " कितने दिनतक मुझे वहां काम करना पड़ेगा ? मुझे वेतन क्या मिलेगा ?" “एक सालसे ज्यादा तुम्हारा काम न रहेगा। आने-जानेका फर्स्टक्लासका किराया और भोजन-खर्चके अलावा १०५ पौंड दे देंगे।" यह वकालत नहीं, नौकरी थी। परंतु मुझे तो जैसे-तैसे हिंदुस्तान छोड़ देना था। सोचा कि नई दुनिया देखेंगे और नया अनुभव मिलेगा सो अलग। १०५ पौंड भाई साहबको भेज दूंगा तो घर-खर्च में कुछ मदद हो जायगी। यह सोचकर मैंने तो वेतनके संबंधमें बिना कुछ खींच-तान किये सेठ अब्दुल करीमकी बात मान ली और दक्षिण अफ्रीका जानेके लिए तैयार हो गया ।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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