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________________ প্রার্থী : সাবা - नेटाल पहुंचा विलायत जाते समय जो वियोग दुःख हुआ था, वह दक्षिण अफ्रीका जाते हुए न हुना; क्योंकि माताजी तो चल बसी थी और मुझे दुनियाका और सफरका अनुभव भी बहुत-कुछ हो गया था। राजकोट और बंबई तो पायाजाया करता ही था। इस कारण अबकी बार सिर्फ पत्नीका ही वियोग दु:खद था। विलायतसे आने के बाद दूसरे एक बालकका जन्म हो गया था। हम दम्पतीके प्रेममें अभी विषय-भोगका अंश तो था ही। फिर भी उसमें निर्मलता पाने लगी थी। मेरे विलायतसे लौटनके वाद हम बहत थोडा समय एक साथ रहे थे और मैं ऐसा-वैसा ही क्यों न हो, उसका शिक्षक बन चुका था। इधर पत्नीकी बहुतेरी बातोंमें बहुत-कुछ सुधार करा चुका था और उन्हें कायम रखने के लिए भी साथ रहने की आवश्यकता हम दोनोंकी मालूम होती थी। परंतु प्र.का मुझे आकर्षित कर रहा था। उसने इस वियोगको सहन करनेकी शक्ति दे दी थी। 'एक सालके बाद तो हम मिलेंगे ही' कहकर और दिलासा देकर मैंने राजकोट छोड़ा, और बंबई पहुंचा। __दादा अब्दुल्लाके बंबईके एजेंटकी मार्फत मुझे टिकट लेना था। परंतु जहाजपर केबिन खाली न थी। यदि मैं यह चूक जाऊं तो फिर मुझे एक मासतक बंबईमें हवा खानी पड़े। एजेंटने कहा-- “हमने तो खूब दौड़-धूप कर ली। हमें टिकट नहीं मिला। हां, डेकमें जायं तो बात दूसरी है। भोजनका इंतजाम सैलून में हो सकता है ।" ये दिन मेरे फरर्ट क्लासकी यात्राके थे। बैरिस्टर भला कहीं डेकमें सफर कर सकता है ? मैंने डे कमें जाने से इन्कार कर दिया। मुझे एजेंटकी बात पर शक भी हुआ। यह बात मेरे मानने में न आई कि पहले दर्जेका टिकट मिल ही नहीं सकता। अतएव एजेंटसे पूछकर खुद में टिकट लाने चला। जहाजपर पहुंचकर बड़े अफसरसे मिला। पूछनेपर उसने सरल भावसे उत्तर दिया--"हमारे यहां मुश्किलसे इतनी भीड़ होती है। परंतु मोजांविकके गवर्नर जनरल इसी जहाजसे जा रहे हैं। इससे सारी जगह भर गई है।"
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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