SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्म-कथा : भाग १ दौड़ गई और बोले "तुम्हारी कठिनाईको अब मैं समझ पाया। तुम्हारा सामान्य ज्ञान बहुत ही कम है। तुम्हें दुनियाका ज्ञान नहीं है। इसके बिना वकीलका काम नहीं चलता। तुमने तो भारतका इतिहास भी नहीं पढ़ा। वकीलको मनुष्यस्वभावका परिचय होना चाहिए। उसे तो चेहरा देखकर आदमीको पहचानना आना चाहिए। दूसरे, हर भारतवासीको भारतवर्ष के इतिहासका भी ज्ञान होना जरूरी है। यों वकालत के साथ इसका कोई संबंध नहीं है; किंतु उसका ज्ञान तुम्हें होना चाहिए। मैं देखता हूं कि तुमने 'के' तथा 'मैलेसन'की १८५७ के गदरपर लिखी पुस्तक भी नहीं पढ़ी है । उसे तो फौरन ही पढ़ लेना । मैं दो पुस्तकोंके नाम और बतलाता हूं। उन्हें मनुष्यको पहचानने के लिए जरूर पढ़ डालना।" यह कहकर उन्होंने लॅवेटर तथा शेमलपेनिककी ‘मुख सामुद्रिक विद्या' (फिजियॉग्नामी) विषयक दो पुस्तकोंके नाम लिख दिये । इन बुजुर्ग मित्रका मैंने खूब अहसान माना। उनके सामने तो एक क्षणके लिए मेरा डर भाग गया, किंतु बाहर निकलते ही फिर चिंता शुरू हुई। 'चेहरा देखकर आदमीको पहचान लेना' इस वाक्यको गुनगुनाता और उन दो पुस्तकोंका विचार करता-करता घर पहुंचा। दूसरे ही रोज लॅबेटरकी पुस्तक खरीद ली। शेमलपेनिककी किताब उस दूकानपर न मिली । लॅवेटरकी पुस्तक पढ़ी तो सही; किंतु वह तो स्नेलकी 'इक्विटी' की अपेक्षा भी कठिन मालूम हुई । दिलचस्पभी बहुत कम थी। शेक्सपियरके चेहरेका अध्ययन किया, लेकिन लंदनकी सड़कों पर घूमते-फिरने शेक्सपियरोंको पहचानकी शक्ति बिलकुल न आई। लेंवेटरकी पुस्तकसे मुझे ज्ञान नहीं मिला । मि. पिकटकी सलाहकी अपेक्षा उनके स्नेहसे बहुत लाभ हुआ। उनकी हंसमुख तथा उदार मुख मुद्राने मेरे दिलमें जगह करली। उनके इस वचन पर, कि वकालत करने के लिए फीरोजशाह मेहताके समान निपुणता, स्मरणशक्ति आदिकी आवश्यकता नहीं होती, प्रामाणिकता व श्रमशीलतासे काम चल जायगा, मेरा विश्वास बैठ गया। इन दो चीजोंकी पूंजी तो मेरे पास काफी थी। अत: दिलकी गहराईमें कुछ आशा बंधी । 'के ' तथा 'मैलेसन 'की पुस्तकको मैं बिलायतम न पढ़ पाया । किन
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy