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'अध्याय २५ : मेरी दुविधा मैंने समय मिलते ही पहले उसीको पढ़ डालनेका निश्चय कर लिया था। दक्षिण अफ्रीका में जाकर मेरा यह मनोरथ पूरा हुआ ।
यों निराशामें आशाका थोड़ा-सा मिश्रण लेकर मैं कांपते पैरोंसे 'पासाम' स्टीमरसे बम्बई बन्दरपर उतरा । बन्दरपर समुद्र क्षुब्ध था । लाँचमें बैठकर किनारेपर पहुंचना था ।
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भाग पहला समाप्त
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