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में अभी-अभी अनुसंधान हुए हैं तथा वे भी किसी निश्चित तथ्य पर नहीं पहुँच सके हैं। इसका निष्कर्ष यह निकला कि भारतीय दर्शन एक सर्वांगीण और परिपूर्णशास्त्र है। इसमें अब कुछ भी परिवर्तन, परिवर्धन, संशोधन को आवश्यकता नहीं है, उसका संकलन हम भले कर सकें, पाश्चात्त्य दर्शनों से उसकी तुलना भले ही की जाय अथवा उसमें विद्यमान किसी महत्त्वपूर्ण प्रश्न को लेकर अनुसंधान भले ही किया जाय, परन्तु और किसी दूसरे कार्य की आवश्यकता उसमें नहीं है। दूसरी ओर पाश्चात्त्य दर्शन अभी भी अपूर्ण है-जीवनः जगत या ईश्वर की व्याख्या में पूर्णतः सफल नहीं है । ___तो, मोक्ष का प्रश्न भी ऐसा ही प्रश्न है जिसके विषय में भारतीय दर्शन ही परिपूर्ण समाधान दे सकता है । दर्शनों के तारतम्य से चार्वाक के द्वारा प्रतिपादित मोक्ष की विचारधारा से आरम्भ करके हम बढ़ जाते हैं और शंकराचार्य के अद्वैत-वेदान्त में जिज्ञासा की पूर्णतः शान्ति पाते हैं। माधवाचार्य की यही मान्यता है । अपने-अपने सम्प्रदाय के अनुसार दूसरे लोग मध्यवर्ती दर्शनों में प्रतिपादित मोक्ष का भी आश्रय लेते हैं। विभिन्न दर्शनों में अन्य विषयों पर भले ही मतभेद हो किन्तु इस प्रश्न पर सब एकमत हैं कि मूल तत्त्व के साक्षात्कार से ही मोक्ष की उपलब्धि हो सकती है।
किन्तु यह साक्षात्कार हो कैसे ? इसके लिये प्रमाणों के रूप में साधन दिये गये हैं। यह प्रश्न सार्वजनिक है कि हम किसी वस्तु का ज्ञाम कैसे प्राप्त करते हैं ? शुद्ध ज्ञान के कौन-कौन से साधन हैं ? प्रत्येक दर्शन में इस पर विचार किया गया है और अपनी रुचि के अनुरूप दार्शनिकों ने प्रमाणों की संख्या निर्धारित की है । चार्वाक केवल प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानता है । उसके अनुसार कोई भी ज्ञान इन्द्रिय की अपेक्षा रखता है। इन्द्रियों से उत्पन्न ज्ञान ही यथार्थ अनुभव है । चार्वाक-दर्शन में यह विचार किया गया है कि अनुमान के लिये व्यप्ति-ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है और व्याप्ति की स्थापना किसी भी साधन से नहीं हो सकती है । यह हम कह सकते हैं कि धूम और अग्नि का सम्बन्ध हम अपनी आँखों के सामने वर्तमान काल में भले ही जान लें किन्तु इसके लिये कोई प्रमाण नहीं है कि वर्तमान काल में ही हमारी आँखों से दूर किसी स्थान में भी धूम और अग्नि का सम्बन्ध होगा। अतीत काल और अनागत काल के विषय में तो कहना ही कठिन है। स्पष्टतः चार्वाक की यह विचारधारा डेविड ह्यम के संशयवाद ( Scepticism ) से बहुत कुछ मिलती-जुलती है।
दूसरी ओर, बौद्धों और जैनों के अनुसार प्रतक्ष और अनुमान दो प्रमाण हैं इनका कहना है कि व्याप्ति का ज्ञान प्राप्त करना कोई कठिन नहीं ।