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सर्वदर्शनसंग्रहे
यहाँ लघुवाक्य में जो चाक्षुषत्व ( हेतु Middle term ) का गया है वह स्वरूपतः असिद्ध है क्योंकि शब्द चातुष नहीं, उसका होना, अर्थाश्रवण ( कानों) से सम्बद्ध है । उसी प्रकार इस अनुमान में
जो विरुद्धधर्मो से परिपूर्ण है वह नानाप्रकारक है ( Major Pr. ) बीजादि विरुद्ध-धर्मो से परिपूर्ण हैं ( Minor Pr. ) .. बीजादि नानाप्रकारक ( diverse ) हैं । ( concl. )
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सम्बन्ध शब्द से दिखाया
अपना गुण है श्रावण
शंका यह है कि बीजादि ( पक्ष ) में काल का भेद होने पर भी तो विरुद्धधर्मों से परिपूर्णता नहीं देखते । इसलिए वे लोग असिद्ध हेतु मानते हैं जिसका खण्डन 'न चायमसिद्धो हेतुः' कहकर किया जा रहा है ।
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प्रसंग और उसका विपर्यय - व्यतिरेक व्याप्ति के द्वारा जिस अनुमान का प्रदर्शन होता है उसे प्रसंगानुमान कहते हैं । दूसरी ओर, अन्वयव्याप्ति के द्वारा प्रदर्शित अनुमान को प्रसंगविपर्ययानुमान कहते हैं । यों असत् से सत् को सिद्ध करना प्रसंग कहलाता है उदाहरण लें - पर्वत अग्निमान् है, क्योंकि वहाँ धूम ( हेतु ) है । इससे जहाँ अग्नि क अभाव है वहाँ धूम का भी अभाव है जैसे तालाब में - यही व्यतिरेकव्याप्ति है । इस प्रकार पर्वत में धूमाभाव असत् है उसे सन् सिद्ध कर रहे हैं-यदि तालाब के समान पर्वत में भी अग्नि नहीं है तब तो धूम भी नहीं हो सकता । इस धूमाभाव की सिद्धि के साथ पर्वत में धूम देखकर अग्नि का अनुमान किया जाता है । यह हुआ प्रसंगानुमान ।
इस स्थान पर स्थायी पदार्थ ( बीजादि ) में वर्तमान अर्थक्रिया करण (कार्योत्पत्ति ) के समय अतीत और भविष्यत् में अर्थ क्रियाकरण की असमर्थता सिद्ध करनी है ( साध्य है ) हम इसे इस प्रकार सिद्ध करते हैं कि एक समय ( वर्तमान) में तो यह अतीत और भविष्य के कार्यों को उत्पन्न नहीं करता (करण को अकरण के द्वारा सिद्ध करते हैं ) । तब हम व्यतिरेकव्याप्ति की सहायता लेते हैं -- जो समर्थ है वह तो काम तो करता ही है । इससे वर्तमान अर्थक्रियाकरण के समय अतीत और भविष्य की अर्थक्रिया का करण सिद्ध होता है । इस तरह की सिद्धि के साथ-साथ वर्तमानकाल से अतीत और भविष्य की अर्थक्रिया के अकरण को देखकर उसकी असमर्थता सिद्ध हो गई । आठवें परिच्छेद में इसका विचार 'आद्य तयोरनिराकरणप्रसङ्गः' आदि कहकर किया गया है । यहाँ उसकी आवश्यकता देखकर पुनः विस्तृत व्याख्या की गई । '
दूसरी ओर प्रसङ्गविपर्यय उसे कहते हैं जहां सत् से सर का ज्ञान दिखाया जाय । उदाहरणतः, 'जहाँ धूम है वहाँ अग्नि है यह अन्वयव्याप्ति दिखाकर पर्वत में सत् ( existent ) धूम को दिखाया जाय । इससे अग्नि का अनुमान होता है । असामर्थ्य - साधक
१ - ( १ ) यद्यदा यत्करणसमर्थं तत्तदा तत्करोत्येव -- प्रसङ्गानुमानम् ।
( २ ) यद्यदा यन्न करोति तत्तदा तत्रासमर्थम् - प्रसङ्गानुमानविपर्ययः ।
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