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बौद्ध-दर्शनम् ( १३. क. असामर्थ्य-साधक प्रसंग और उसका विपर्यय ) यद्विरुद्धधर्माध्यस्तं तन्नाना, यथा शीतोष्णे। विरुद्धधर्माध्यस्तश्चायमिति जलधरे प्रतिबन्धसिद्धिः। न चायमसिद्धो हेतुः। स्थायिनि कालभेदेन सामर्थ्यासामर्थ्ययोः प्रसङ्गतद्विपर्ययसिद्धत्वात् । तत्रासामर्थ्यसाधको प्रसङ्गतद्विपर्ययौ प्रागुक्तौ।
जिन वस्तुओं पर विरुद्ध धर्म आरोपित होते हैं वे नाना प्रकार की ( एक प्रकार की नहीं ) हैं उनमें परस्पर भेद है, जैसे शीत और उष्ण । यह स्वभाव पर विरुद्ध-धर्मों का आरोप हुआ है-इसी तरह मेघ में भी व्याप्ति की सिद्धि होती है । ( प्रतिबन्ध = व्याप्ति । मेघ को भी सिद्ध करते हैं कि इसकी सत्ता स्थायी नहीं, क्षणिक ही है। वह कैसे ? मेघ प्रतिक्षण में नये-नये स्वरूप का प्रदर्शन करता है इसलिए उसमें क्षण-क्षण विरुद्ध-धर्म तो आते ही हैं और इसीलिए वह नाना प्रकार का है । न्याय की भाषा में कहेंगे कि विरुद्धधर्म के आरोपण और नानात्व में व्याप्ति है। यही व्याप्ति जलधर के नानात्व की सिद्धि करती है)। वहाँ यह हेतु (विरुद्धधर्म का आरोपित होना ) असिद्ध नहीं है । कारण यह है कि स्थायी (बीजादि ) पदार्थ में काल के भेद से सामर्थ्य और असामर्थ्य दोनों का प्रसंग ( असत् से सत् की सिद्धि ) और प्रसंगविपर्यय ( सत् से सत् की सिद्धि )-ये सिद्ध होते हैं । इनमें असामर्थ्य के साधक प्रसंग और उसका विपर्यय पहले ही कहे जा चुके हैं ( देखिये-परि०८)।
विशेष-असिद्ध हेतु उसे कहते हैं जब हेतु या अनुमान का साधन ( Middle term ) साध्य के समान ही सिद्धि की अपेक्षा करे; उसकी सत्ता सन्दिग्ध हो जैसे
___ गगनारविन्द सुगन्धित है ( निष्कर्ष )
क्योंकि वह ( गगनारविन्द ) अरविन्द ( कमल ) है-हेतु,
जो कमल हैं वे सुगन्धित हैं, जैसे तालाब का कमल । यहाँ अरविन्द हेतु है जिसका आश्रय है गगनारविन्द । वह होता ही नहीं इसलिए यहाँ हेतु आश्रय के विषय में असिद्ध अर्थात् आश्रयासिद्ध है । असिद्ध हेत्वाभास को प्राचीन नैयायिक साध्यसम कहते हैं । असिद्ध के तीन भेद हैं-(१) आश्रयासिद्ध ( उपर्युक्त उदाहरण ), (२) स्वरूपासिद्ध ( हेतु का स्वरूपतः पक्ष में न रहना ) और (३) व्याप्यत्वासिद्ध ( सोपाधिक हेतु )। इनके विस्तृत विवेचन के लिए न्यायदर्शन देखें।
यहाँ पर प्रतिपक्षी लोग शंका उठाते हैं कि 'यद्विरुद्धधर्मा०' वाले अनुमान में भी स्वरूपासिद्ध नामक दोष है । पहले स्वरूपासिद्ध समझ लें । उदाहरण है
सभी चाक्षुष ( Visual ) पदार्थ गुण हैं ( बृहत् वाक्य ), शब्द चाक्षुष पदार्थ है ( लघु वाक्य ), ::.शब्द गुण है (निष्कर्ष)।