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सर्वदर्शनसंग्रहे
त्म्य । ] उनमें सत् (विज्ञान) और असत् ( घटादि ) के बीच, न तो धूम और अग्नि की तरह तदुत्पत्ति ( Causa ! relation ) से उत्पन्न व्याप्ति ( अविनाभाव ) सम्भव है, न ही शिशपा और वृक्ष की तरह तादात्म्य ( Law of identity ) से उत्पन्न व्याप्ति । ( देखिये, बौद्ध दर्शन, अनु० १ ) ।
इसलिए, 'विज्ञान ही असत् पदार्थ का प्रकाशक है' यह असद्वादियों का असत् प्रलाप ( Ldle tallk ) है । इस प्रक" - आरोप्यमाण वस्तु असत् नहीं होती ।
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विशेष - शून्यवादी बौद्धों का सिद्धान्त असत्ख्यातिवाद कहलाता है जिसमें आरोप्यमाण वस्तु को असत् कहते हैं । शंकराचार्य आरोप को भ्रम या मिथ्या भले ही कहते है, असत् नहीं । । असत् का अर्थ है तीनों काल में बाधित पदार्थ, जैसे वन्ध्यापुत्र, शशशृंग आदि । मामांसकों के सिद्धान्त का नाम अख्यातिवाद है जिसमें भ्रमज्ञान नहीं मानते । नैयायिक लोग अन्यथाख्यातिवाद मानते हैं जिसके अनुसार एक वस्तु को प्रतीति दूसरे रूप में होती है । वेदान्तियों का सिद्धान्त अनिर्वचनीयख्यातिवाद है जिसमें वस्तु को सत्, असत् या उभयात्मक रूप में व्यक्त करना असम्भव है । यह स्मरणीय है कि शंकर सत्ता के तीन रूप मानते हैं - पारमार्थिक, व्यावहारिक और प्रातिभासिक | अनिर्वचनीयता पारमार्थिक दृष्टिकोण से ही हो सकती है । व्यावहारिक दृष्टि से वे सभी प्रतीतियां ठीक हैं जिनसे हम दैनिक कार्य करते हैं । पारमार्थिक दृष्टि से ये भ्रम हैं, केवल ब्रह्म ही सत्य है । प्रातिभासिक दृष्टि से सीपी पर रजत का आरोप भी सत् है किन्तु व्यावहारिक दशा में वह भ्रम है । ऊपर की सत्ता की दृष्टि से नीचे की सत्तावाली वस्तुएं भ्रम होती हैं ।
सत् का ही किसी पर आरोप होता है, असत् का नहीं । शश पर शृङ्ग का आरोप करते हैं क्योंकि शृङ्ग की अन्यत्र सत्ता सम्भव है । परन्तु अब शशशृङ्ग का किसी पर आरोप नहीं करेंगे क्योंकि इसकी सत्ता कहीं नहीं है ।
( १५ क. विज्ञानवादियों का खण्डन - भ्रमविचार )
ननु विज्ञानवादिनयानुसारेण प्रतीयमानं रजतं ज्ञानात्मकम् तत्र च युक्तिरभिधीयते -- यद्यथानुभूयते तत्तथा । अन्यथात्वं तु बलबन्दाधकोपनिपातादास्थीयत इत्युभयवादिसम्मतोऽर्थः । तत्र च नेदं रजतमिति निषिद्धेदभावं रजतमर्थादान्तरज्ञानरूपमवतिष्ठते । न चेदन्तया निषेधे सति अनिदन्तया च बहिरपि व्यवस्थोपपत्तेः कुतः संविदाकारतेतिवाच्यम् । व्यवहितस्यापरोक्षत्वानुपपत्तावपरोक्षस्य विज्ञानस्य कक्षीकर्त्तव्यत्वात् । तथा च प्रयोगः विवादपदं विज्ञानाकारः, सम्प्रयोगमन्तरेणापरोक्षत्वात, विज्ञानवदिति ।
[विज्ञानवादी पूर्वपक्षी के रूप में कह रहे हैं - ] विज्ञानवादियों के सिद्धान्त के अनुसार, प्रतीत होनेवाला रजत ज्ञानात्मक है । इसके लिए युक्ति ( Argument ) दी जाती है