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________________ शांकर-दर्शनम् ७०९ ( Beneficial ) स्मरण करके, उसी जाति का होने के कारण इस ( आरोपित रजत ) के उपकार का कारण होने का अनुमान करके उसको कामना से पुरुष प्रवृत्त होता है । इसलिए पहला पक्ष ( अर्थात् आरोप उत्पन्न करके भेदाज्ञान व्यवहार का कारण बनता है ) मानना अच्छा है। विशेष अनुमान का रूप इस तरह का है - (१) सामने में विद्यमान पदार्थ उपकारक है । ( प्रतिज्ञा ) (२) क्योंकि यह रजत है । ( हेतु ) ( ३ ) जैसे पहले के अनुभव का रजत । ( उदाहरण ) यहाँ स्मरणीय है कि जब तक हम रजत को आरोपित न मानें तब तक पक्ष में हेतु को सत्ता नहीं हो सकती । पक्ष है पुरोवर्तो पदार्थ, हेतु है रजतत्व । न च तटस्थरजतस्मरणपक्षेऽपि हेतोगहीतत्वेनायं मार्गः समान इति वाच्यम् । रजतत्वस्य हेतोः पक्षधर्मत्वाभावात् । न च पक्षधर्मताया अभावेऽपि व्याप्तिबलाद्गमकत्वं शङ्कयम्। व्याप्तिपक्षधर्मतावल्लिङ्गस्यैव गमकत्वाङ्गीकारात् । आप ऐसा भी नहीं कह सकते कि तटस्थ ( पहले से अनुभूत तथा अनारोपित ) रजत का स्मरण माननेवाले पक्ष में भी तो हेतु को ग्रहण कर लेने से यह मार्ग एक तरह का हो है। [शंका का यही आशय है कि रजत का स्मरण करने से आरोप के बिना भी हेतु का ज्ञान होने के कारण अनुमान करना आसान है । हेतु 'रजतत्व' उसमें दिया जा सकता है । परन्तु शंका इसलिए ठीक नहीं है ] क्योंकि 'रजतत्व' को हेतु जो बनायेंगे वह ( हेतु ) पक्ष (= 'इदम्' का अर्थ ) का धर्म नहीं रखता। [ पूर्वपक्षी आरोप को तो स्वीकार नहीं कर रहा है, इसलिए ‘इदम्' के द्वारा अभिहित वस्तु में रजतत्व हेतु की वृत्ति नहीं होगी। 'इदम्' को तो ग्रहण मानते हैं, रजत को स्मरण ।] उत्तर में आप यह नहीं कह सकते कि पक्ष-धर्मता ( Minor Premise, हेतु और पक्ष का सम्बन्ध बतलानेवाला वाक्य ) के बिना भी केवल व्याप्ति ( Major Premise, हेतु और साध्य का सम्बन्ध बतलानेवाला वाक्य ) बल से हम हेतु को ज्ञापक मान लंगे। यह स्वीकृत सिद्धान्त है कि व्याप्ति और पक्षधर्मता से युक्त लिंग ( साधन, Middle Term ) ही ज्ञापक हो सकता है । [ अतः हेतु की पक्ष में वृत्ति होना परम आवश्यक है, नहीं तो अनुमान होगा ही नहीं। तदाहुःशबरस्वामिनः-ज्ञातसम्बन्धस्यैव पुंसो लिङ्गविशिष्टधयेकदेशदर्शनाल्लिङ्गिविशिष्टधयेकदेशबुद्धिरनुमानमिति । आचार्योऽप्यवोचत् ४०. स एष चोभयात्मा यो गम्ये गमक इष्यते । असिद्धनैकदेशेन गम्यासिद्धर्न बोधकः ॥ इति ।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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