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सर्वदर्शनसंग्रहे
१२. उपाधिसंनिधिप्राप्तक्षोमाविद्याविजृम्मितम् । उपाध्यपगमापोह्यमाहुः सोपाधिकं भ्रमम् ।। इति ।
अध्यास पुनः दो प्रकार का है— निरुपाधिक और सोपाधिक। इसे भी कहा है- 'दोष से या कर्म से संचालित अविद्या ( अज्ञान ) से जो उत्पन्न होता है तथा तत्त्वज्ञान का विरोधी होता है वह भ्रम निरुपाधिक ( आत्मा पर अहंकार का अध्यास करनेवाला ) है । [ 'इदं रजतम्' वाक्य में इदम् का अंश उपहित नहीं हुआ है । उस पर रजत के संस्कार के साथ वर्तमान अविद्या के द्वारा रजत का अध्यास होता है । उसी प्रकार अविद्या के द्वारा ही अनुपहित चित्र रूपी आत्मा पर अहंकार का अभ्यास होता है । ] ॥ ११ ॥ उपाधि के सामीप्य से जब अविद्या में क्षोभ ( संचालन; क्रिया ) उत्पन्न होता है तब उस अविद्या से ही उत्पन्न भ्रम को सोपाधिक कहते हैं जो उपाधि के विनाश से स्वयं भी नष्ट हो जाता है । [ जब एकात्मक ब्रह्म पर, उसके उपहित हो जाने पर, जीव और ईश्वर के रूप में भेद की प्रतीति हो तो उसे सोपाधिक भ्रम कहते हैं । ] ॥ १२ ॥ '
तत्र स्वरूपेण कल्पिताहमाद्यध्यासो निरुपाधिकः । तदप्युक्तम्१३. नीलिमेव वियत्येषा भ्रान्त्या ब्रह्मणि संसृतिः ।
घटव्योमेव भोक्तायं भ्रान्तो भेदेन न स्वतः ॥ इति ।
अत एव भाष्यकार: 'शुक्तिका रजतवदवभासत एकश्चन्द्रः सद्वितीयवदिति' निदर्शन द्वयमुदाजहार । शिष्टं शास्त्र एव स्पष्टमिति विस्तरभियोपरम्यते । एवं च दृग्दृश्यौ द्वावेव पदार्थाविति वेदान्तिनां सिद्धान्त इति सर्वमवदातम् ।
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उनमें स्वरूप से कल्पित 'अहम्' आदि का [ आत्मा पर ] अध्यास होना निरुपाधिक है । उसे भी कहा है- ' जिस प्रकार आकाश में नीलापन का भ्रम है उसी तरह भ्रान्ति से यह संसार भी ब्रह्म में प्रतिभासित होता है । [ आकाश सत्य है नीलिमा भ्रम, वैसे ही ब्रह्म सत्य है प्रपश्व भ्रम के कारण आकाश से भिन्न ] घट के आकाश को समझते हैं वैसे ही यह भोक्ता ( जीव ) [ अपने को ब्रह्म से ] भिन्न समझकर भ्रान्त होता है जब कि स्वरूप से ऐसी भिन्नता नहीं है ।। १३ ।। ' [ उक्त श्लोक में दोनों प्रकार के अध्यासों का वर्णन है । आत्मा पर अहंकारादि का अध्यास होना निरुपाधिक भ्रम है । निरुपाधिक भ्रम उसे कहते हैं जो अधिष्ठान ( आत्मा ) के ज्ञान से निवृत्त हो जाय अथवा जिसका निरूपण उपाधि के निरूपण के अधीन न हो । एक ब्रह्म में जीव और ईश्वर के भेद की प्रतीति होना सोपाधिक अध्यास है । सोपाधिक भ्रम की निवृत्ति अधिष्ठान के ज्ञान से नहीं
होती, क्योंकि इसमें है । शंकराचार्य ने लाते हैं ।]
उपाधि लगी है । ब्रह्मसूत्र भाष्य के
इसका निरूपण उपाधि के निरूपण पर आधारित आरम्भ में दोनों के उदाहरण दिये हैं - इसे बत