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________________ शांकर-दर्शनम् ६७९ का ग्रहण होता है । कहना यह है कि मोहन ने राम के पुत्र की उत्पत्ति का प्रत्यक्ष अनुभव किया । वह पुत्रशब्द से युक्त कुंकुम से अंकित पट दिखलानेवाले सन्देशवाहक को लेकर राम के पास गया । यह किसी अज्ञात प्रथा की ओर निर्देश है । मोहन ने राम से कहाबड़े भाग्यवान् हो राम, तुम्हें पुत्र हुआ है। राम तो सुनते ही हर्ष से भर गया । उसके दोनों को प्रफुल्ल हो गये, आँखें खिल उठीं । मोहन उसके हर्षातिरेक को देखकर अनुमान करता है के पुत्र की उत्पत्ति ही इसके हर्ष का कारण है । यद्यपि सुख से प्रसव भी हुआ है पर वह केवल होने से ही हर्षहेतु नहीं हो सकता । यदि ऐसा नहीं होता तो 'गामानय' वाक्य को सुनकर प्रवृत्त होनेवाले व्यक्ति का छत्रजूता आदि धारण करना आदि विद्यमान होने से उसमें भी शक्तिग्रहण को जाता । फलतः परिशेष का नियम लगाना सम्भव है जो कारणों की शृङ्खला से पुत्रजन्म को निकालकर खड़ा करता है तथा सिद्ध वाक्य में भी शक्तिग्रह की सिद्धि करता है । ] ――――――――― पुत्रजन्मैव तत्सूचकमिति चेत् — प्रथमप्रतीतपुत्रजन्मपरित्यागे कारणाभावात् । पुत्रजननस्यैवाधिकानन्दहेतुत्वाच्च । पुत्रोत्पत्ति विपत्तिभ्यां नापरं सुखदुःखयोः । इति विद्यमानत्वात् । तथा चाचकथच्चित्सुखाचार्य:९. दृष्टचैत्रसुतोत्पत्तेस्तत्पदाङ्कितवाससा । वार्ताहारेण यातस्य परिशेषविनिश्वितेः ॥ ( चित्सुखी, पृ० ८८ ) इति । यदि आप कहें कि [ प्रिया को सुख से प्रसव होने आदि का ] सूचक पुत्र का जन्म ही है [ तथा इस आधार पर दूसरे कारणों की सम्भावना हो सकती है जो हर्ष के कारण बनकर शक्तिग्रह में बाधा पहुँचा सकते हैं, तो हमारा उत्तर है कि ऐसी अवस्था में यह मान्य है कि पुत्र का जन्म तो पहले प्रतीत हो चुका है जिसे आप कारण मान रहे हैं - इसी के ऊपर दूसरे कारण आधारित हैं । दूसरे कारणों को तभी स्वीकृत किया जा सकता है जब इस प्रथम प्रतीत होनेवाले कारण को त्याग दें । किन्तु ] इस प्रथम प्रतीत होनेवाले ( हर्षकारण ) पुत्रजन्म को त्यागकर [ दूसरे कारणों को मान्यता देने का ] कोई कारण नहीं दिखलाई पड़ता । [ पुत्र का जन्म न केवल सबसे पहले प्रतीत होता है प्रत्युत ] वह पुत्रजन्म ही सबसे अधिक आनन्द का कारण होता है । इसकी पुष्टि के लिए यह श्लोकार्थं विद्यमान है'पुत्र की उत्पत्ति से बढ़कर न कोई सुख है और उसकी विपत्ति से बढ़कर कोई दुःख भी नहीं ।' ऐसा ही चित्सुखाचार्य ने कहा है- 'जिसने चैत्र के पुत्र की उत्पत्ति देखी है वह ( देवदीत ) पुत्र शब्द से अंकित वस्त्र लिये हुए संवादवाहक के साथ [ चैत्र के पास | जाना है
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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