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________________ ३२ सर्वदर्शनसंग्रहे विशेष-बौद्ध-दर्शन के सुप्रसिद्ध चार सम्प्रदायों का वर्णन यहाँ हुआ है । यद्यपि आगे हमें इनका विस्तृत वर्णन मिलेगा किन्तु यहाँ संक्षेप में कुछ जान लेना आवश्यक है। (१) माध्यमिक ( शून्यवाद Nihilism )-यह मत नागार्जुन ( २री शती ई० ) से सम्बद्ध है जिनके माध्यमिक-शास्त्र (कारिका ) के अनुसार संसार असत् या शून्य है-द्रष्टा, दृश्य, दर्शन सभी स्वप्न के समान भ्रम हैं । फिर भी शून्य का अभिप्राय ऐसा सत् है जो चतुष्कोटि ( सत्, असत्, सदसत्, असन्नासत् ) से विलक्षण, अनिर्वचनीय है । व्यावहारिक वस्तुएं सभी शून्य या असत् हैं किन्तु उनको पृष्ठभूमि में ऐसी सत्ता है है जो अनौपाधिक और अविकृत है । माध्यमिक कारिका ( ११७ ) में कहा गया है __ न सन्नासन्न सदसन्न चाप्यनुभयात्मकम् । चतुष्कोटिविनिमुक्तं तत्त्वं माध्यमिका विदुः ।। स्मरणीय है कि शंकराचार्य ने अनुभयात्मक के अलावे सभी को स्वीकार कर ब्रह्म की शक्ति माया को कोटित्रयशून्य कहा है जिसके फलस्वरूप कट्टर हिन्दुओं ने उन्हें 'प्रच्छन्न ( छिपा हुआ ) बौद्ध' की संज्ञा दे रखी थी। उनके अनुसार माया ‘सन्नाप्यसन्नाप्युभयात्मिका नो' (विवे० चूडा० ) है। (२) योगाचार ( Subjective idealism )–दिङ नाग, धर्मकीर्ति, असंग आदि आचार्यों की छत्रच्छाया में यह सम्प्रदाय फलता-फूलता रहा है। इसके अनुसार बाह्य अर्थ तो शून्य है, किन्तु चित्त जो सभी वस्तुओं का ज्ञाता है, कभी भी असत् नहीं हो सकता अन्यथा हमारे ज्ञान भी असत् हो जायंगे । मन के द्वारा गृहीत सभी पदार्थ धारणामात्र ( Ideas ) हैं । मानसिक धारणाएं ही बाह्य वस्तुओं के रूप में भ्रमवत् दृष्टिगोचर होती हैं। विषयी ( Subject ) ही बाह्य-वस्तुओं पर अपनी तत्सम्बन्धी धारणाओं का आरोपण करता है ( Subjective idealism ) । इस विचार में अंग्रेज दार्शनिक बर्कले से यह मत मिलता है। इसका दूसरा नाम विज्ञानवाद भी है जिसमें विज्ञान या शुद्ध चैतन्य ही एकमात्र सत् है। इस मत में चित्त के आठ प्रकार हैंचक्षुर्विज्ञान आदि वैभाषिकों के सम्मत ६ विज्ञान, मनोविज्ञान और आलयविज्ञान । इस मत का प्रसिद्ध ग्रन्थ है--लंकावतारसूत्र । (३) सौत्रान्तिक ( Representation.... )-उपर्युक्त दोनों सम्प्रदाय जहाँ महायान के हैं, सौत्रान्तिक और वैभाषिक हीनयान के भेद हैं। सौत्रान्तिक का विशेष सम्बन्ध सूत्र-पिटक से है। इसके अनुसार मानसिक और बाह्य दोनों पदार्थ सत् हैं यद्यपि बाह्य-पदार्थों का ज्ञान अनुमान से होता है। उनके प्रत्यक्ष के लिए विषय, चित्त, इन्द्रियाँ तथा सहायक तत्त्वों ( जैसे प्रकाश, आकार )--इन चार वस्तुओं की अपेक्षा है। इनके परस्पर मिलने से मन में उत्पन्न होनेवाले विषय का विचार ( Idea ) या अनुकृति ( Copy ) प्राप्त होती है । इस प्रकार बाह्य वस्तुएँ मन में रहनेवाले विषय के विचारों
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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