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बौद्ध-वर्शनम्
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लोक आदि का ), तो यहाँ भी आप अनुमान का सहारा ले रहे हैं जिसका लिङ्ग है अभाव | ( अभावके आधार पर ही आप इन वस्तुओं का निषेध करते हैं । फिर अनुमान को खण्डित करने में तुक ही क्या रहा ? जब तीन-तीन प्रकार के अनुमान आप धड़ाधड़ दे रहे हैं फिर कैसे कहते हैं कि अनुमान है ही नहीं ? ) ।
इसलिए तथागत ( बुद्ध ) के अनुयायियों ने कहा है - ( १ ) दूसरे प्रमाण ( अनुमान ) में सामान्य ( समान जातीयता ) की स्थिति होने के कारण, ( २ ) दूसरे की सम्मति में गति या उसका अनुमान करने के कारण तथा ( ३ ) किसी के प्रतिषेध के कारण - दूसरे अनुमान प्रमाण की सत्ता [ स्वीकार करनी पड़ती ] है । ऊपर कहें तीनों प्रकार के अनुमानों का संग्रह इस श्लोक में हुआ है ।) इस विषय पर विद्वानों ने बहुत विचार-विमर्श किया है इसलिये यहाँ ग्रन्थ बड़ा हो जाने के भय से रुका जाय ।
( ६. बौद्धदर्शन के चार भेद - भावना - चतुष्टय )
ते च बौद्धाश्चतुविधया भावनया परमपुरुषार्थं कथयन्ति । ते च माध्यमिक - योगाचार - सौत्रान्तिक- वैभाषिकसंज्ञाभिः प्रसिद्धा बौद्धा यथाक्रमं सर्वशून्यत्व - बाह्यार्थशून्यत्व- बाह्यार्थानुमेयत्वबाह्यार्थप्रत्यक्षत्ववादानातिष्ठन्ते । यद्यपि भगवान्बुद्धः एक एव बोधयिता तथापि बोद्धव्यानां बुद्धिभेदाच्चातुविध्यम् । यथा 'गतोऽस्तमर्कः' इत्युक्ते जारचौरानूचानादयः स्वेष्टानुसारेणाभिसरणपरस्वहरणसदाचरणादिसमयं बुध्यन्ते । सर्वं क्षणिकं क्षणिक, दुःखं दुःखं, स्वलक्षणं स्वलक्षणं, शून्यं शून्यमिति भावनाचतुष्टयमुपदिष्टं द्रष्टव्यम् ।
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ये बौद्ध लोग चार प्रकार की भावना ( दृष्टिकोण ) से परम पुरुषार्थ का वर्णन करते हैं । ये बौद्ध माध्यमिक, योगाचार, सौत्रान्तिक और वैभाषिक के नाम से प्रसिद्ध हैं तथा क्रमशः इन वादों या सामान्य सिद्धान्तों पर अड़े हुए हैं - सब कुछ शून्य होना ( माध्यमिक ), बाह्य-पदार्थों का शून्य होना ( योगाचार ), बाह्य-पदार्थों का अनुमान से ज्ञान होना ( सौत्रान्तिक) और बाह्य-पदार्थों का प्रत्यक्ष से ज्ञान होना ( वैभाषिक ) । यद्यपि समझानेवाले भगवान् बुद्ध एक ही थे फिर भी समझनेवाले पात्रों के बुद्धि-भेद से ये चार प्रकार बन गये । जिस प्रकार 'सूर्य डूब गया' ऐसा कहने चोर और अनूचान ( वेदपाठी ) आदि अपनी-अपनी
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पर जार ( उपपति, प्रेमी), इच्छा के अनुसार अभिसरण
( प्रेयसी से मिलने के लिए संकेत स्थल पर जाना ), परधन का हरण और सदाचरण - आदि के समय समझ लेते हैं ।
देखना चाहिए कि चारों भावनाएं ( या दृष्टिकोण ) इस प्रकार उपदिष्ट हुई हैं( १ ) सब कुछ क्षणिक है क्षणिक, (२) सब कुछ दुःख है दुःख, ( ३ ) सबों का लक्षण अपने आप में है तथा (४) सब कुछ शून्य है शून्य ।