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सर्वदर्शनसंग्रहे
( २५. कैवल्य की प्राप्ति - प्रकृति और पुरुष को )
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तदेतेषु प्रलीनेषु निरुपप्लवविवेकख्या तिपरिपाकवशात् कार्य कारणात्मकानां प्रधाने लयः चितिशक्तिः स्वरूपप्रतिष्ठा पुनर्बुद्धिसत्त्वाभिसम्बन्धविधुरा वा कैवल्यं लभत इति सिद्धम् । द्वयी च मुक्तिरुक्ता पतञ्जलिना'पुरुषार्थशून्यानां गुणानां प्रतिप्रसवः कैवल्यं स्वरूपप्रतिष्ठा वा चितिशक्तिः' ( पात० यो० सू० ४।३४ ) इति । न चास्मिन्सत्यपि कस्मान्न जायते जन्तुरिति वदितव्यम् । कारणाभावात्कार्याभाव इति प्रमाणसिद्धार्थे नियोगानुयोगयोरयोगात् ।
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तो, इन सबों के ( क्लेशबीज कर्माशयों के ) प्रलीन हो जाने पर ( अपने-अपने कारणों में विलीन हो जाने पर ), उपद्रवों से रहित [ प्रकृति - पुरुष में भेदज्ञान के परिपाक के कारण, कार्य और कारण के रूप में विद्यमान सभी पदार्थों का प्रकृति में लय हो जाने से [ प्रकृति को केवल्य मिलता है । ] इसके अतिरिक्त, चितिशक्ति ( आत्मा ) जब अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित हो जाती है तथा फिर से बुद्धितत्त्व के साथ सम्बन्ध नहीं हो पाता तो उसे ( पुरुष को ) भी केवल्य मिलता है, यह सिद्ध हुआ ।
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पतञ्जलि ने दोनों प्रकार की मुक्तियों का वर्णन किया है - 'पुरुषार्थ से शून्य हो गये गुणों का अपने कारण में लीन हो जाना ( प्रतिप्रसव जहाँ से आये वहीं चला जाना ) अथवा चितशक्ति का अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित हो जाना केवल्य है ।' (यो० सू० ४ | ३४ ) । [ गुणों की प्रवृत्ति पुरुषों के भोग या अपवर्ग के लिए होती है जो पुरुषार्थ हैं । इन्हीं पुरुषार्थों के लिए सत्त्वादि गुण विभिन्न रूपों में परिणत होते हैं । पुरुष को परम पुरुषार्थ मिल गया तो ये गुण कृतार्थ हो जाते हैं तथा अपने मूल रूप - प्रधान या प्रकृतिमें विलीन हो जाते हैं । तब अकेली प्रकृति बच जाती है-इसे प्रकृति का कैवल्य ( अकेला हो जाना ) कहते हैं । दूसरी ओर, बुद्धितत्त्व से सम्बन्ध न रहने के कारण जब पुरुष केवल चित्तशक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हो जाता है तब उसे पुरुष का कैवल्य कहते हूँ । सांख्य दर्शन में स्वीकृत दो तत्त्वों को योग भी मानता है अतः दोनों का अलग-अलग कैवल्य माना गया है । केवल्य कोई ऐसी चीज तो है नहीं कि केवल चेतन को ही मिले । कैवल्य का अर्थ है अकेला हो जाना, अपनी सारी दुकान समेट लेना । ]
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ऐसी शंका नहीं करनी चाहिए कि केवल्य हो जाने पर भी प्राणी का जन्म क्यों नहीं होगा ? यह बात तो प्रमाणों से सिद्ध है कि कारण ( क्लेशबोज ) के अभाव से कार्य ( जन्म, मरणादि ) का अभाव होता है । इस सिद्ध बात के लिए न तो नियोग ( विधि, अपूर्व वस्तु का बोधक ) सम्भव है न अनुयोग ( प्रश्न ) ही । [ जो बात सभी जानते हैं उसके लिए विधि नहीं दी जाती । कैवल्य पाने के बाद जन्म नहीं होता - यह बात वैसी ही