SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 666
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पातम्बल-पर्शनम् ६२९ है, कहने की आवश्यकता नहीं । प्रश्न भी अज्ञात वस्तु के लिए ही किया जाता है । प्रस्तुत वस्तु के जानने के लिए प्रश्न करना भी व्यर्थ है।] अपरथा कारणाभावेऽपि कार्यसम्भवे मणिवेधादयोऽन्धादिभ्यो भवेयुः। तथा चानुपपन्नार्थतायामामाणको लौकिक उपपन्नार्थो भवेत् । तथा च श्रुतिः–'अन्धो मणिमविन्दत् । तमनगुलिरावयत् । अग्रीवः प्रत्यमुञ्चत् । तमजिह्वा असश्चत' ( ते० आ० १११११५)। अविन्ददविध्यत । आवयद् गृहीतवान् । प्रत्यमुञ्चत् पिनद्धवान् । असश्चताभ्यपूजयत्, स्तुतवानिति यावत् । यदि ऐसा न हो और कारण के न रहने पर भी कार्य होने लगे ( क्लेशबीज न रहने पर भी जन्म-मरण होने लगे ) तो अन्धे भी मणि में छेद करने लग जायंगे [ क्योंकि अवलोकन का कारण अर्थात् आँखों के न रहने पर भी उसका कार्य मणिवेध आदि सम्भव हो सकेगा। ] असम्भव वस्तु का उदाहरण देने के लिए दिया गया यह लौकिक दृष्टान्त भी सम्भव हो जायगा । जैसा कि श्रुति में कहा है-'किसी अन्धे ने मणि का वेध ( छेद) किया। किसी अंगुलिरहित व्यक्ति ने उसे पकड़ा ( उसे ग्रथित किया )। किसी ग्रीवाहीन व्यक्ति ने उसे पहना और किसी जिहाहीन ने उसकी प्रशंसा की। ( तैत्तिरीय आरण्यक, १११११५) । अविन्दत् = वेध किया । आवयत् = पकड़ा ( गूंथा)। प्रत्यमुञ्चत् = पहना। असश्चत = प्रशंसा की, स्तुति की । वास्तव में कोई पुरुष आँखों से मणि देखकर; उसे अंगुलियों से पकड़कर, गले में पहनकर जीभ से प्रशंसा करता है। चिदाकार आत्मा उन अंगों से रहित होकर भी उन सारे व्यापारों को करती है, क्योंकि इसकी शक्ति अचिन्त्य है । यही उस श्रुति का अर्थ है । यहां चिदात्मा की प्रशंसा है कि यह असम्भव कार्य भी करती है। यदि कारण न रहने पर भी कार्य होता तो यहाँ प्रशंसा का अवकाश नहीं था। यहाँ पर माधवाचार्य इसे बिल्कुल भौतिकवादी अर्थ में लेते हैं । ] (२५ क. योगशास्त्र के चार पक्ष ) एवं च चिकित्साशास्त्रवद् योगशास्त्रं चतुहम् । यथा चिकित्साशास्त्रं रोगो रोगहेतुरारोग्यं भेषजमिति, तथेदमपि संसारः संसारहेतुर्मोक्षो मोक्षोपाय इति । तत्र दुःखमयः संसारो हेयः । प्रधानपुरुषयोः संयोगो हेयभोगहेतुः । तस्यात्यन्तिको निवृत्तिहनिम् । तदुपायः सम्यग्दर्शनम् । एवमन्यदपि शास्त्रं यथासम्भवं चतुव्यूहमूहनीयमिति सर्वमवदातम् ॥ इति श्रीमत्सायणमाधवीये सर्वदर्शनसंग्रहे पातञ्जलदर्शम् ॥ इस प्रकार चिकित्साशास्त्र की तरह योगशास्त्र के चार पक्ष ( Aspects ) हैं । जैसे रोग, रोग के कारण, आरोग्य और औषधि । इन चारों पक्षों को मिलाकर चिकित्साशास्त्र
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy