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________________ सर्वदर्शनसंग्रहेकोष्ठ ( शरीर, विशेषतः उदर ) में स्थित वायु को बाहर निकालना प्रश्वास कहलाता है। उन दोनों का संचरण न होना ही प्राणायाम है । ____ यहाँ पर शंका हो सकती है कि यह तो प्राणायाम का सामान्य लक्षण नहीं हुआ, क्योंकि यह लक्षण प्राणायाम के भेदों-रेचक, पूरक, कुम्भक-में अनुगत ( Applicable ) नहीं हो सकता । [ कुम्भक में भले ही गति का अभाव हो, किन्तु रेचक और पुरक में तो क्रमशः वायु को निकालने और उसे भीतर लाने की क्रियाओं में गति रहती ही है । [ इसका उत्तर है कि ] यह दोष नहीं है। सभी भेदों में श्वास और प्रश्वास की गति नो विच्छन्न होती ही है । [ अब तीनों भेदों के लक्षण तथा उनमें प्राणायाम के लक्षण की मंगति दिखायी जायगी।] तथा हि-कोष्ठयस्य वायोर्बहिनिःसरणं रेचकः प्राणायामो यः प्रश्वासत्वेन प्रागुक्तः । बाह्यस्य वायोरन्तर्धारणं पूरको यः श्वासरूपः। अन्तस्तम्भवृत्तिः कुम्भकः । यस्मिञ्जलमिव कुम्भे निश्चलतया प्राणाख्यो वायुरवस्थाप्यते । तत्र सर्वत्र श्वासप्रश्वासद्वयगतिविच्छेदोऽस्त्येवेति नास्ति शङ्कावकाशः। तदुक्तं-'तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः' ( पात० यो० सू० २।४९ ) इति । ___इसे ए। देखें-कोष्ठस्थित वायु का बाहर निकलना रेचक प्राणायाम है जिसे प्रश्वास के रूप में पहले कहा गया है । बाहरी वायु का भीतर प्रवेश करना पूरक है जिसे श्वास भी कह सकते हैं । वायु को भीतर ही स्तम्भित करने की क्रिया कुम्भक है । इस प्राणायाम में घड़े में रखे हुए जल की तरह निश्चल रूप से प्राणवायु अवस्थित की जाती है । इन सबो में श्वास-प्रश्वास दोनों की गति में रुकावट तो होती ही है, अतः शंका का कोई अवसर ही नहीं है। [ रेचक या पूरक में किसी एक तरफ की ही गति रहती है, अतः श्वास-प्रश्वास दोनों की गति तो नहीं रहती। इसके अलावे गतिविच्छेद का अर्थ स्वाभाविक गति का विच्छेद समझना चाहिए । रेचक या पूरक में वायु अपनी स्वाभाविक गति से नहीं चलनी । देश या काल की गति की अपेक्षा अधिक गति रहती ही है। वास्तव में रेचक वह है जिसमें प्रश्वास या रेचन के द्वारा वायु की गति का विच्छेद करें। उसी तरह श्वास या पूरण के द्वारा वायु की गति में व्यवधान डालना पूरक प्राणायाम है । कुम्भक में तो दोनों ओर से गति का अभाव रहता है, उसमें तो कुछ कहना ही नहीं। ] यही कहा गया है.-'उस ( आसन की स्थिरता ) के सम्पन्न हो जाने पर श्वास और प्रश्वास की गति का विच्छेद कर देना प्राणायाम है' ( यो० सू० २।४९ )। ( २२. वायुतत्त्व का निरूपण ) स च वायुः सूर्योदयमारभ्य सार्धघटिकाद्वयं घटीयन्त्रस्थितघटभ्रणम
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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