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________________ पातञ्जल - दर्शनम् ६१५ ( ४ ) स्वस्तिकासन - [ घुटना और जंघा के बीच में पैरों के तलवों को रखना ही स्वस्तिकासन है । शरीर को वीरासन की तरह सीधा रखें। (५) दण्डकासन - [ भूमि में जंघा और घुटना सटाकर पैरों को फैला दें। दोनों पेरों के अंगूठे और घुट्टियां ( गुल्फ ) सटी हों। यह दण्डकासन है । ] (६) सोपाश्रय - [ योगपट्ट ( योगाभ्यास के लिए कपड़ा ) के साथ बैठना । ] (७) पर्यङ्क - [ बाहों को घुटने की ओर फैलाकर सो जाना ] (८) कौश्वनिषदन - [ बैठे हुए क्रौंच पक्षी के समान बैठ जाना । ] (९) उष्ट्रनिषदन - [ बैठे हुए ऊँट की तरह बैठना । दोनों पैरों को पीछे की ओर मोड़कर घुटने के बल खड़ा हो जाय । पेट के ऊपर से पीछे की ओर झुककर दोनों हाथों से भूमि में स्थित पैरों को पकड़ ले । ] (१०) समसंस्थान - [ घुटनों के ऊपर हाथ रखकर सिद्धासन या पालथी लगा लें । शरीर, सिर और गर्दन एक सीध में रहें । ] याज्ञवल्क्य ने पद्मासन आदि का स्वरूप निरूपित किया है - 'दोनों हाथों को व्युत्क्रम करके उनसे, जंघाओं के ऊपर रखे गये पैरों के अंगूठों को पकड़ लें । हे ब्राह्मणश्रेष्ठ, यह सबों के द्वारा पूजित पद्मासन है ।' अवशिष्ट आसन वहीं से जान लें । 3 विशेष -निषदन, संस्थान और आसन तीनों पर्यायवाची शब्द हैं । आसनों का योगशास्त्र में बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है । हमारे सामान्य जीवन में भी ये इसलिए उपयोगी हैं कि अनेक रोगों का शमन, चित्त की एकाग्रता, शरीर का आरोग्य, दीर्घायु प्राप्ति आदि बहुत से लाभ इनसे होते हैं । यदि ठीक से सम्प्रदायपूर्वक आसन किये जायें तो कुछ ही दिनों में इनसे अद्भुत चमत्कार देखा जा सकता है । उपर्युक्त आसन तो केवल उदाहरण हैं— सेकड़ों आसनों का वर्णन शास्त्रों में है । तस्मिन्नासनस्थैर्ये सति प्राणायामः प्रतिष्ठितो भवति । स च श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदस्वरूपः । तत्र श्वासो नाम बाह्यस्य वायोरन्तरानयनम् प्रश्वासः पुनः कोष्ठयस्य बहिनिःसारणम् तयोरुभयोरपि संचरणा भावः प्राणायामः । ननु नेदं प्राणायामसामान्यलक्षणम् । तद्विशेषेषु रेचकपूरककुम्भकप्रकारेषु तदनुगतेरयोगादिति चेत्-नैष दोषः । सर्वत्रापि श्वासप्रश्वासगतिविच्छेदसम्भवात् । इस प्रकार जब आसन की स्थिरता सम्पन्न ( बेठने का अभ्यास ) हो जाय तब प्राणायाम प्रतिष्ठित होता है । प्राणायाम का अर्थ है श्वास और प्रश्वास की गति को विच्छिन्न ( रुद्ध ) कर देना । उनमें श्वास बाहरी वायु को भीतर लाने की क्रिया को कहते हैं ।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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