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सर्वदर्शनसंपहे
३८. एते यमाः सनियमाः पञ्च पञ्च प्रकीर्तिताः । विशिष्टफलदाः कामे निष्कामाणां विमुक्तिदाः ॥
(वि० पु० ६७।३६-३८) इति । विष्णुपुराण में इन यमों और नियमों का प्रदर्शन किया गया है-'अपने मन को [ आत्मा का चिन्तन करने के ] समर्थ बनाते हुए, निष्काम भाव से (फल की कामना न करते हुए), योगी ब्रह्मचर्य, अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह का सेवन ( पालन ) करे ॥ ३६ ॥ अपने मन का निग्रह करके (नियतात्मवान् ) योगी स्वाध्याय, शौच, सन्तोष तथा तप करे और उसी प्रकार परब्रह्म में मन को आसक्त (प्रवण ) कर दे ( अर्थात् ईश्वर-प्रणिधान करे ) ॥ ३७॥ नियमों के साथ-साथ ये यम पांच-पांच की संख्या में बतलाये गये हैं। सकाम भाव से करने पर ये विशेष फल देते हैं, यदि निष्काम भाव से करें तो विमुक्ति देते हैं ॥ ३८ ॥' (विष्णुपुराण, ६७१३६-३८)।
( २१ क. आसन और प्राणायाम) स्थिरसुखमासनं (पात० यो० सू० २१४६ ) पद्मासन-भद्रासनवीरासन-स्वस्तिकासन-दण्डकासन-सोपाश्रय-पर्यङ्क-कौञ्चनिषदनोष्ट्रनिषदनसमसंस्थानभेदाद्दश विधम् ।
३९. पादाङ्गुष्ठौ निबध्नीयाद्धस्ताभ्यां व्युत्क्रमेण तु ।
ऊर्वोरुपरि विप्रेन्द्र कृत्वा पादतले उभे ॥
पद्मासनं भवेदेतत्सर्वेषामभिपूजितम् । इत्यादिना याज्ञवल्क्यः पद्मासनादिस्वरूपं निरूपितवान् । तत्सर्व तत एवावगन्तव्यम् ।
'जो स्थिर और सुखदायी हो वह आसन है' ( यो० सू० २।४६ ) । इसके दस
दाम
(१) पद्मासन-[ दाहिने पैर को बायीं जंघा के ऊपर तथा बायें पैर को दाहिनी जंघा के ऊपर जमाकर रखने से पद्मासन बनता है। यदि बायें और दाहिने हाथों को पीठ की ओर से ले जाकर उनकी उंगलियों से क्रमशः दायें और बायें परों के अंगूठों को भी पकड़ लें तो इसे बद्ध पद्मासन कहते हैं। किन्तु इसे याज्ञवल्क्य पद्मासन ही मानते हैं।]
(२ ) भद्रासन-[ सीमनी रेखा (लिंग से गुदा की ओर जानेवाली रेखा ) के बगल में अण्डकोश के नीचे दोनों पैरों की एड़ियां जुटा दें तथा दोनों हाथों से पैरों को को पकड़े रहें । यह भद्रासन सभी रोगों का नाश करता है।]
(३) वीरासन-[ एक पैर को मोड़कर दूसरे पैर को उसी प्रकार मोड़कर एक जंघा पर दूसरे को रख दे । सामान्य रूप से बैठने के लिए यह अच्छा साधन है । ]