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________________ पातञ्जल-दर्शनम् ( १८. मन्त्र और उनका विवेचन ) ते च मन्त्रा द्विविधाः - वैदिकास्तान्त्रिकाच । वैदिकाश्च द्विविधाःप्रगीताः अप्रगीताश्च । तत्र प्रगीताः सामानि । अप्रगीताश्व द्विविधा:छन्दोबद्धास्तद्विलक्षणाश्च । तत्र प्रथमा ऋचः, द्वितीया यजूंषि । तदुक्तं जैमिनिना - ' तेषामृग्यत्रार्थवशेन पादव्यवस्था । गोतिषु सामाख्या । शेष यजुः शब्दः । ' ( जै० सू० २।१।३३-३५ ) इति । ये मन्त्र दो प्रकार के हैं - वैदिक और तान्त्रिक । वैदिक मन्त्रों के भी दो भेद हैंगीत (गेय ) तथा अप्रगीत ( अगेय ) | प्रगीत मन्त्रों में साम आते हैं तथा अप्रगीत के दो भेद हैं-- छन्दों में बँधे हुए तथा छन्दों से भिन्न । छन्दों में बँधे हुए वैदिक मन्त्र ऋचाएँ हैं और छन्दों से भिन्न यजुष् । इसे जैमिनि ने [ मोमांसा - सूत्र २११/३३-३५ में ] कहा है - ' इन मन्त्रों में ऋक् वह है जहाँ [ वाक्य में ] अर्थ के अनुसार चरणों की व्यवस्था होती है । गीतियों (गान के प्रकारों) में साम नाम दिया जाता है । अवशिष्ट मन्त्रों में ( जहाँ न पादव्यवस्था है न गान ही ) यजुः शब्द का प्रयोग होता है ।' तन्त्रेषु कामिक कारणप्रपश्वाद्यागमेषु ये ये वर्णितास्ते तान्त्रिकाः । ते पुनर्मन्त्रास्त्रिविधाः - स्त्रीपुंनपुंसकभेदात् । तदाह १४. स्त्रीपुंनपुंसकत्वेन त्रिविधा मन्त्रजातयः । स्त्रीमन्त्रा वह्निजायान्ता नमोऽन्ताः स्युर्नपुंसकाः ॥ १५. शेषा पुमांसस्ते शस्ताः सिद्धा वश्यादिकर्मणि ॥ इति । ६०३ तन्त्रों (शास्त्रों) में अर्थात् कामिक, कारण, प्रपञ्च आदि आगमों में जिन-जिन मन्त्रों का वर्णन है वे तान्त्रिक मन्त्र हैं । ये तान्त्रिक मन्त्र भी तीन प्रकार के हैं—स्त्रीलिंग, पुंलिंग तथा नपुंसकलिंग | उसे कहा है- 'स्त्री, पुरुष और नपुंसक होने के कारण मन्त्रों को तीन जातियाँ हैं । जिनके अन्त में 'स्वाहा' ( अग्नि की पत्नी ) शब्द रहे वे स्त्रीलिंग हैं, जिनके अन्त में 'नमः' शब्द है वे नपुंसक हैं तथा अवशिष्ट मन्त्र पुरुष हैं, ये ही सबसे अच्छे हैं और वश्य आदि कर्मों में सिद्धि प्राप्त हैं ।" विशेष - आगम शब्द का अक्षरार्थ इस प्रकार है- आगतं पञ्चवक्त्रात्तु गतं च गिरिजानने । मतं च वासुदेवस्य तस्मादागममुच्यते ॥ आगम का लक्षण तन्त्रों में इस प्रकार दिया गया हैसृष्टिश्च प्रलयश्चैव देवतानां तथार्चनम् । साधनं चैव सर्वेषां पुरश्चरणमेव च ॥ षट्कर्म साधनञ्चैव ध्यानयोगश्चतुविधः । सप्तभिर्लक्षणैर्युक्तमागमं द्विदुर्बुधाः ॥
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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