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________________ ६०२ सर्वदर्शनसंग्रहेक्रियायोगश्वोपदिष्टः पतञ्जलिना-'तपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः' (पात. यो० सू० २११) इति । तपःस्वरूपं निरूपितं याज्ञवल्क्येन १३. विधिनोक्तेन मार्गेण कृच्छचान्द्रायणादिभिः । - शरीरशोषणं प्राहुस्तपसां तप उत्तमम् ॥ इति । प्रणवगायत्रीप्रभृतीनां मन्त्राणामध्ययनं स्वाध्यायः। क्रियायाग का उपदेश भी पतञ्जलि ने किया है-'तप, स्वाध्याय और ईश्वर-प्रणिधान (परमेश्वर में सभी कर्मों को अर्पित कर देना)-ये क्रियायोग हैं' (यो० सू० २।१)। तप का स्वरूप याज्ञवल्क्य ने इस प्रकार निश्चित किया है-'विधिवाक्यों के कथन के अनुसार कृच्छ्र, चान्द्रायण आदि व्रतों के द्वारा जो शरीर का शोषण किया जाता है उसे ही तपस्याओं में सर्वोत्तम तप माना गया है।' प्रणव ( ॐकार ), गायत्री आदि मन्त्रों का अध्ययन ( पारायण ) करना स्वाध्याय है। विशेष-कृच्छ एक वत है जिसके कई भेद हैं। उनमें प्राजापत्य नाम का कृच्छ बारह दिनों में सम्पन्न होता है। प्रथम तीन दिनों तक प्रात:काल भोजन करें, फिर तीन दिनों तक सायंकाल भोजन करे, उसके बाद तीन दिनों तक बिना मांगे जो मिले खा ले और अन्त में तीन दिनों तक कुछ न खाये । ( मनु० ११।२११ ) । चान्द्रायण व्रत चन्द्र की गतिविधि से एक महीने में सम्पन्न होता है। शुक्लपक्ष की प्रतिपद् को मोर के अण्डे के बराबर एक ग्रास ( कवल ) खायें, द्वितीया को दो-इस क्रम से बढ़ाते जायें और पूर्णिमा के दिन पन्द्रह ग्रास खायें। फिर कृष्णपक्ष की प्रतिपद् को चौदह ग्रास, द्वितीय को तेरह-इस क्रम से घटाते-घटाते अमावस्या को बिल्कुल उपवास करें। इसे यवमध्य चान्द्रायण कहते हैं, क्योंकि यव के दाने के समान इसमें भोजन की मात्रा बीच में अधिक हो जाती है । जब कृष्णपक्ष की प्रतिपद् से आरम्भ करके पूर्णिमा तक करते हैं तो उसमें बीच में उपवास का दिन पड़ता है। स्मरणीय है कि कृष्णपक्ष में भोजन कम करते जाना है, शुक्लपक्ष में बढ़ाते जाना है। इस तरह के दूसरे चान्द्रायण को पिपीलिकामध्य चान्द्रायण कहते हैं, क्योंकि चोंटी के बीच का भाग जैसे पतला होता है, वैसे ही भोजन की मात्रा बीच में कम करनी है। __ मन्त्र शब्द का अर्थ है जिसके मनन करने से त्राण ( रक्षा ) हो । कल्पसूत्रों में मन्त्रों की अगम्य और अचिन्त्य शक्ति का वर्णन है । तुलसीदास ने भी कहा है : मन्त्र महामनि विषय ब्याल के । मेटत कठिन कुअंक भाल के ॥ ( रा० च० मा० १।३१।५) अव योगशास्त्र की एक अलग शाखा-मन्त्रशास्त्र का विवरण प्रस्तुत करते हैं।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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