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________________ सर्वदर्शनसंग्रहे योगशास्त्र में मन्त्र के छह कर्मों का वर्णन भी है- शान्तिकर्म, वश्यकर्म, स्तम्भनकर्म, विद्वेषकर्म, उच्चाटनकर्म तथा मारणकर्म । शारदातिलक का श्लोक है ६०४ शान्तिवश्यस्तम्भनानि विद्वेषोच्चाटने तथा । मारणान्तानि शंसन्ति षट् कर्माणि मनीषिणः ॥ ब्रह्मवैवर्तपुराण ( प्र० अ० ३७ ) में अग्नि की पत्नी स्वाहा का उल्लेख है --- प्रकृति की कला से सभी शक्तियों के रूप में अग्नि की दाहिका शक्ति अपनी कामना करनेवाली उत्पन्न हुई । ग्रीष्मकाल में दोपहर के सूर्य की प्रभा को भी अभिभूत कर देनेवाली वह स्वाहा-सुन्दरी अग्नि की पत्नी हुई ।' ( १८ क. मन्त्रों के दस संस्कार ) जननादिसंस्काराभावेऽपि निरस्तसमस्तदोषत्वेन सिद्धिहेतुत्वात् सिद्धत्वम् । स च संस्कारो दशविधः कथितः शारदातिलके १६. मन्त्राणां दश कथ्यन्ते संस्काराः सिद्धिदायिनः । निर्दोषतां प्रयान्त्याशु ते मन्त्राः साधु संस्कृताः ॥ ऊपर मन्त्रों को सिद्ध होना कहा है । यह इसलिए कि वे जनन आदि संस्कारों के अभाव में भी सभी दोषों से रहित हैं तथा सिद्धि प्रदान करते हैं। शारदातिलक में संस्कार के इन दस भेदों का वर्णन हुआ है - 'मन्त्रों के दस सिद्धिदाता संस्कार कहे जाते हैं । अच्छी तरह से संस्कृत ( संस्कारयुक्त ) कर दिये जाने पर ये मन्त्र शीघ्र ही निर्दोष हो जाते हैं ॥ १६ ॥' १७. जननं जीवनं चैव ताडनं बोधनं तथा । अभिषेकise विमलीकरणाप्यायने पुनः ॥ १८. तर्पणं दीपनं गुप्तिवंशैता मन्त्रसंस्क्रियाः । मन्त्राणां मातृकायन्त्रादुद्धारो जननं स्मृतम् ॥ १९. प्रणवान्तरितान्कृत्वा मन्त्रवर्णाञ्जपेत्सुधीः । मन्त्रार्णसंख्यया तद्धि जीवनं सम्प्रचक्षते ॥ '[ ये संस्कार हैं- ] जनन, जीवन, ताडन, बोधन, अभिषेक, विमलीकरण, आप्यायन, तर्पण, दीपन, गोपन- ये दस संस्कार मन्त्रों के हैं । मातृकायन्त्र ( अक्षरों का बना हुआ यन्त्र ) से मन्त्रों का उद्धार करना जनन ( Begetting ) संस्कार माना गया है ।। १७-१८ ।। मन्त्रों के अक्षरों को प्रणव (ॐ कार ) से घेरकर ( बीच में प्रणव रखकर ) मन्त्र के वर्णों को संख्या के जितना जप करना चाहिए - इसे ही जीवन ( Vivifying ) कहते हैं ॥ १९ ॥ [ किसी मन्त्र में जितने वर्ण ( अ ) हों जप की संख्या भी उतनी ही होगी । जैसे 'नमः शिवाय' इस मन्त्र में पाँच वर्ण हैं, तो इसका जप भी पाँच
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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