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सर्वदर्शनसंग्रहे
भूमेरलाभोऽलब्ध भूमिकत्वम् । लब्धायामपि तस्यां चित्तस्याप्रतिष्ठानवस्थितत्वमित्यर्थः ।
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तत्मान्न वृत्ति निरोधो योगपक्षनिक्षेपमर्हतीति चेत् ।
उनमें तीन दोषों (वात, पित्त, कफ) की विषमता से उत्पन्न ज्वरादि को व्याधि कहते हैं । चित्त का अकर्मण्य ( योगानुष्ठान के असमर्थ ) होना स्त्यान है । दो विरोधी विकल्पों के साथ सम्बद्ध ज्ञान संशय है । समाधि के साधनों को भावना ( प्राप्ति के लिए यत्न ) न करना प्रमाद | शरीर, वाणी या मन के भारी होने से किसी काम में प्रवृत्ति न होना आलस्य । [ कफ आदि की वृद्धि से शरीर भारी हो जाता है । तामस पदार्थों के सेवन से वाणी भी भारी हो जाती है तथा तमोगुण के उद्रेक से चित्त भारी हो जाता है । ] विषयों की अभिलाषा रखना अविरति है । एक वस्तु में दूसरी वस्तु का ज्ञान कर लेना भ्रान्तिदर्शन है । किसी भी कारण से समाधिभूमि ( मधुमती आदि किसी भूमि ) को न पा सकना अलब्धभूमिकत्व कहलाता है । [ मधुमती आदि भूमियों का वर्णन इसी दर्शन में आगे करेंगे । ] समाधि-भूमि को पा लेने पर भी उसमें चित्त का प्रतिष्ठित न होना अनवस्थितत्व है । यही सूत्र का अर्थ है |
इसलिए ( क्षिप्तादि अवस्थाओं में वृत्ति का निरोध होने पर भी योग के फल के रूप में प्राप्त क्लेशहानि से निःश्रेयस प्राप्ति न हो सकने के कारण ) वृत्ति निरोध को हम योग का लक्षण नहीं मान सकते ।
( ९ क. समाधान )
मैवं वोचः । हेयभूतक्षिप्ताद्य वस्थात्रये वृत्तिनिरोधस्य योगत्वासम्भवेऽप्युपादेययोरेकाग्रनिरुद्धावस्थयोवृत्तिनिरोधस्य योगत्वसम्भवात् । एकतानं चित्तमेकाग्रमुच्यते । निरुद्धसकलवृत्तिकं संस्कारमात्रशेषं चित्तं निरुद्धमिति भण्यते ।
ऐसा मत कहो । क्षिप्त आदि तीन अवस्थाएँ त्याज्य हैं अतः उनके विचार से [ उनमें अतिव्याप्ति होने के भय से ] वृत्तियों के विरोध को योग भले ही न मानें, किन्तु जहाँ तक एकाग्र और निरुद्ध इन दोनों उपादेय अवस्थाओं का सम्बन्ध है, वृत्ति निरोध को योग मानना ही पड़ेगा । [ वास्तव में क्षिप्तादि अवस्थाओं में भी एकाध वृत्ति का निरोध हो जाने से हमें उन अवस्थाओं में योग के लक्षण की अतिव्याप्ति नहीं समझनी चाहिए | योग के लक्षण में जो चित्तवृत्ति निरोध आया है उसका अर्थ है - द्रष्टा को अपने स्वरूप में आत्यन्तिक रूप से अवस्थित करा देनेवाला चित्तवृत्तिनिरोध या क्लेश - कर्मादि का विनाशक चित्तवृत्तिनिरोध । ऐसी बात नहीं कि एक वृत्ति का निरोध हो जाने से योग हो गया और इस लक्षण पर दूसरी अवस्थाओं को भी हम योग कह दें । क्षिप्त, मूढ़ या विक्षिप्त अवस्था में किसी वृत्ति का निरोध हो जाता है सही, परन्तु न तो उस निरोध से