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पातजल-वर्शनम्
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द्रष्टा अपने स्वरूप में अवस्थित ही हो सकता है और न ही वह निरोध क्लेश आदि का विरोधी है । ]
[ सत्त्वगुण से भर जाने पर ] जब चित्त किसी एक वस्तु में स्थिर हो जाता है तब उसे एकाग्र अवस्था कहते हैं ] जब चित्त की सारी वृत्तियां रुक जायें, केवल संस्कार भर ही शेष रहे तो उसे निरुद्ध चित्त करते हैं । [ ये दोनों अवस्थाएं योग के लिए उपादेय हैं। अतः इनके विचार से योग चित्तवृत्ति का निरोध तो है ही । ]
( १० समाधि का निरूपण – इसके भेद )
स च समाधिद्विविधः - सम्प्रज्ञातासम्प्रज्ञातभेदात् । तत्रैकाग्रचेतसि यः प्रमाणादिवृत्तीनां बाह्यविषयाणां निरोधः स सम्प्रज्ञातसमाधिः । सम्यक प्रज्ञायतेऽस्मिन् प्रकृतेविविक्ततया ध्येयमिति व्युत्पत्तेः । स चतुविधः । सवितर्कादिभेदात् । समाधिर्नाम भावना । सा च भाव्यस्य विषयान्तरपरिहारेण चेतसि पुनः पुनर्नवेशनम् ।
[ योग के पर्याय के रूप में प्रसिद्ध ] यह समाधि दो प्रकार की है— सम्प्रज्ञात ( जिसमें ज्ञान स्पष्ट हो ) और असम्प्रज्ञात ( जिसमें स्पष्ट ज्ञान भी न रहे ) । जब एकाग्र अवस्था में आये हुए चित्त में बाह्य विषय अर्थात् प्रमाण आदि वृत्तियों का निरोध हो जाय तब उसे सम्प्रज्ञात समाधि कहते हैं । इसकी व्युत्पत्ति ( निर्वाचन ) है कि जिसमें ध्येय वस्तु प्रकृति से पृथक् रूप में अच्छी तरह प्रज्ञात हो । इसके चार भेद हैं-सवितर्क आदि ( = सविचार, सानन्द तथा सास्मित ) । समाधि एक तरह की भावना है और इसका अभिप्राय है— भाव्य वस्तु ( जिस वस्तु का चिन्तन हो रहा हो वह वस्तु ) को दूसरे विषयों से बचाकर चित्त में बार-बार बैठाना । [ स्मरणीय है कि सभी विषयों का निरोध हो जाने पर भी सम्प्रज्ञात समाधि में आत्म-विषयक सात्त्विक प्रमाणवृत्ति रहती ही है । ]
भाव्यं च द्विविधम् - ईश्वरस्तत्त्वानि च । तान्यपि द्विविधानि जडाजडभेदात् । जडानि प्रकृतिमहद हंकारादीनि चतुर्विंशतिः । अजडः पुरुषः । तत्र तदा पृथिव्यादीनि स्थूलानि विषयत्वेनादाय पूर्वापरानुसन्धानेन शब्दार्थोल्लेखसम्भेदेन च भावना प्रवर्तते स समाधिः सवितर्कः । तन्मात्रान्तःकरणलक्षणं सूक्ष्मं विषयमालम्ब्य देशाद्यवच्छेदेन भावना
यदा
प्रवर्तते तदा सविचारः ।
भाव्य वस्तु के भी दो भेद हैं- ईश्वर और तत्त्वसमूह । तत्त्वसमूह दो प्रकार के हैंजड़ और अजड़ । प्रकृति, महत्, अहंकार आदि चौबीस जड़ पदार्थ हैं। पुरुष ( जीवात्मा ) अजड़ है ।
( १ ) सवितर्क समाधि वह है जब इन भाव्य वस्तुओं में से पृथिवी आदि स्थूल पदार्थों को विषय के रूप में लेकर, पूर्व और अपर के क्रम का अनुसन्धान करते हुए
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