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________________ चार्वाकदर्शनम् ९. अव्याप्तसाधनो यः साध्यसमव्याप्तिरुच्यते स उपाधिः । शब्देऽनित्ये साध्ये सकर्तृकत्वं घटत्वमश्रवतां च ॥ १०. व्यावर्त्तयितुमुपात्तान्यत्र क्रमतो विशेषणानि त्रीणि । तस्मादिदमनवद्यं समासमेत्यादिनोक्तमाचाय्यैश्च ॥ इति । जो ( १ ) साधन को व्याप्त न करे, ( २ ) साध्य को व्याप्त करे और ( ३ ) साध्य के समान व्याप्ति रखे - उसे उपाधि कहते हैं । [ उपाधि के उपर्युक्त लक्षण में ] तीन विशेषण इसलिए रखे गये हैं कि [ इनमें से प्रत्येक के द्वारा ] शब्द को अनित्य सिद्ध करने के समय क्रमशः निम्नोक्त तीन उपाधियाँ हटायी जायें - ( १ ) कर्त्ता से युक्त होना, ( २ ) घट होना, ( ३ ) श्रवणीय न होना । इसलिए यह निर्दोष ( लक्षण ) है और आचार्यों ने भी 'समासमा' इत्यादि श्लोक के द्वारा कहा है । १७ विशेष - उपाधि के लक्षण में तीन खण्ड हैं और इन खण्डों में किसी एक के भी अभाव में दोष उत्पन्न होगा । तभी तो लक्षण की पूर्णता समझी जायगी। हम यहाँ देखें कि कैसे, किसके अभाव में, कौन-सा दोष उत्पन्न होता है। एक अनुमान है सभी उत्पन्न वस्तुएँ अनित्य हैं, शब्द उत्पन्न होता है, ( शब्दोऽनित्यः उत्पन्नत्वात् ) .. शब्द अनित्य है, इस अनुमान में 'अनित्यत्व' साध्य है, 'उत्पन्नत्व' साधन । हमें उपाधि के उपर्युक्त लक्षण की परीक्षा इसी अनुमान के आधार पर करनी है । सबसे पहले उपाधि के लक्षण से प्रथम विशेषण - साधना व्यापकत्व — को हटा दें; बचा, 'साध्यव्याप्तिः उपाधिः' । अब ऊपर वाले शुद्ध अनुमान ( अनौप|धिक) में इस लक्षण को लगाने पर उपाधि निकल आवेगी-सकर्तृकत्व ( किन्तु पहले से वह अनुमान उपाधिहीन है ) । इसका कारण यह है कि सकर्तृकत्व के साथ अनित्यत्व ( साध्य ) की व्यापकता है - सभी सर्त क वस्तुए अनित्य हैं ( इस प्रकार साध्य को व्याप्त करने के कारण यह उपाधि हो गई ) । किन्तु उपर्युक्त अनुमान उपाधिहीन है, 'सकर्तृकत्व' उपाधि उसमें आ न जाय, इसलिए 'साधनाव्यापक' - यह विशेषण रखा गया । उसे रखने से 'सकर्तृक' उपाधि नहीं आ सकती क्योंकि 'सकर्तृक' ( उपाधि ) के साथ 'उत्पन्नत्व' ( साधन ) की अव्यापकता नहीं, व्यापकता ही है; अतः उस अवस्था में ऐसी किसी उपाधि को आने का अवसर नहीं मिलेगा । अब दूसरे विशेषण - साध्यव्यापकत्व- पर आपत्ति आयी, इसे हटा दें; बचा, ‘अव्याप्तसाधनः उपाधिः' । इस लक्षण को उपर्युक्त अनुमान में लगाने पर एक उपाधि निकल आती है—घटत्व । घटत्व ( उपाधि ) उत्पन्नत्व ( का अव्यापक है। क्योंकि जो घटत्व होगा वह तो उत्पन्न नहीं होगा ( इस प्रकार साधन को अव्याप्त करने के कारण यह उपाधि हो गई ) । 'घटत्व' उपाधि का वारण करने के लिए 'साध्य २ स० सं० ا
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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