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सर्वदर्शनसंग्रहे
वर्षसहस्रमध्ययनकालः । न च पारावाप्तिरभूत । किमुताद्य यश्चिरं जीवति स वर्षशतं जीवति । अधीतिबोधाचरणप्रचारणश्चतुभिर्युपायै विद्योपयुक्ता भवति । तत्राध्ययनकालेनैव सर्वमायुरुपयुक्तं स्यात् ।
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[ पूर्वपक्षियों की शंका है कि ] ऐसा होने पर भी अभीष्ट प्रयोजन की प्राप्ति नहीं हो सकती, क्योंकि उस ( प्रयोजन की प्राप्ति ) के लिए कोई उपाय नहीं है ( = शब्दसंस्कार के ज्ञान का अर्थात् कौन-कौन शब्द शुद्ध हैं कौन-कौन अशुद्ध — इसको जानने का उपाय है। ही नहीं ) | यदि आप कहें कि प्रत्येक शब्द को पढ़ डालना ही उपाय है तो यह प्रतिपदपाठ शब्दों के ज्ञान का उपाय नहीं है, [ यह तो अध्येता का मरण है ] शब्द और अपशब्द के भेद से शब्दों के अनन्त भेद हैं ( = कुछ शब्द शुद्ध हैं, कुछ अशुद्ध ) ।
ऐसी कथा कही जाती है ( परम्परा से चली आती है ) — बृहस्पति ने इन्द्र के सामने एक हजार दिव्य वर्ष तक प्रत्येक पद का पाठ करते हुए शब्दों का पारायण किया किन्तु अन्त तक नहीं पहुँच सके ( = उतने समय में भी सभी शब्दों का पाठ नहीं कर सके ) । [ जरा सोचिये ! ] बृहस्पति- जैसे अध्यापक, इन्द्र- जैसे अध्येता और एक हजार दिव्य वर्ष अव्ययन का समय ! फिर भी अन्त की प्राप्ति नहीं हुई !! आज की तो बात ही क्या है ? जो बहुत जीता है तो एक सौ वर्षों तक जीता है । अध्ययन ( Study ), बोध ( Understanding ), आचरण ( Practice ) तथा प्रचारण ( पढ़ाना Teaching ) -- इन चार उपायों से विद्या उपयोगी बनती है । [ इधर प्रतिपद-पाठ करने से व्याकरण के ] अध्ययनकाल में ही सारी आयु का उपयोग हो जायगा अन्य उपायों का तो प्रश्न ही नहीं उठेगा ) |
विशेष – प्रतिपद-पाठ का अर्थ है प्रत्येक शब्द ( रामः, कृष्णः आदि ) का पाठ करके उसका साधुत्व बतलाना । यह उपाय ( Method ) व्याकरणशास्त्र का नहीं हो सकता, इसे आगे बतलाते हैं । 'शब्दानां शब्दपारायणम्' में द्विरुक्ति नहीं है । 'शब्दपारायण' एक शब्द है जो व्याकरण- शास्त्र के अर्थ में रूढ ( योगरूढ ) हो गया है । इसी से बोध होने पर भी 'शब्दानाम्' का अलग प्रयोग इसलिए किया गया है कि 'प्रतिपदपाठविहितानाम्' विशेषण को स्थान मिल सके । 'वाचमवोचत्' में व्यर्थता होने पर भी 'शुचिस्मितां वाचमवोचत्' ठीक है क्योंकि 'वाचम्' का विशेषण दिया गया है। शिशुपालवध ( १।२५ ) । उक्त कथा का उद्धरण पतंजलि ने महाभाष्य में दिया है । अन्त में प्रतिपदपाठ - विधि का खण्डन करके उत्सर्गापवाद - विधि का प्रतिपादन किया जायगा ।
तस्माद नभ्युपायः शब्दानां प्रतिपत्तौ प्रतिपदपाठ इति प्रयोजनं सिध्येदिति चेत्-मैवम् । शब्दप्रतिपत्तेः प्रतिपदपाठसाध्यत्वानङ्गीकारात् । प्रकृत्यादिविभागकल्पनावत्सु लक्ष्येषु सामान्यविशेष रूपाणां लक्षणानां पर्जन्यवत्सकृदेव प्रवृत्तौ बहूनां शब्दानामनुशासनोपलम्भाच्च ।