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________________ पाणिनि-दर्शनम् ४९९ इसलिए शब्दों के ज्ञान के लिए प्रत्येक शब्द का पाठ करना उपाय नहीं हो सकता, अतः व्याकरण के प्रयोजन की सिद्धि नहीं होगी। [पूर्वपक्षी की इस शंका पर वैयाकरण कहते हैं कि ] ऐसी बात नहीं । हम भी यह स्वीकार नहीं करते कि शब्द का ज्ञान प्रतिपद पाठ से मिल सकता है ( साध्य है)। [प्रतिपदपाठ के द्वारा व्याकरण नहीं चलता हमारी भी यही मान्यता है । लक्ष्य के रूप में जो शब्द हैं उनमें प्रकृति आदि (=प्रत्यय, पद, वाक्य ) के विभागों की कल्पना की जाती है तथा उनके लिए सामान्य और विशेष लक्षणों ( सूत्रों) की प्रवृत्ति एक बार ही मेष की तरह होती है जिससे बहुत-से शब्दों का अनुशासन देखा जाता है। विशेष-पतंजलि अपने भाष्य में शब्दानुशासन की प्रक्रिया बतलाते हुए कहते हैंकथं तह_मे शब्दाः प्रतिपत्तव्याः ? किंचित्सामान्यविशेषवल्लक्षणं प्रवर्त्य येनाल्पेन यत्नेन महतो महतः शब्दोघान्प्रतिपद्येरन् । किं पुनस्तत् ? उत्सर्गापवादो। (पृ० ६ ) उन्हीं का शब्दान्तर करके माधवाचार्य दिये जा रहे हैं। पर्जन्यवत् प्रवृत्ति का अर्थ है कि जैसे मेघ एक ही साथ सभी स्थलों पर, समुद्र और मरुभूमि में भी, जल बरसाता है उसी तरह किसी सामान्य या विशेष लक्षण से एक ही साथ अनेकानेक शब्दों का अनुशासन होगा, अलग-अलग उन्हें देखने आवश्यकता नहीं पड़ेगी। महाभाष्य (१२१॥ २९) में कहा है-कृतकारि खल्वपि शास्त्रं पर्जन्यवत् । तद्यथा पर्जन्यो यावदूनं पूर्ण च सर्वमभिवर्षति । तथा हि । 'कर्मण्यण' ( पा० सू० ३।२।१) इत्येकेन सामान्यरूपेण लक्षणेन कर्मोपपदाद्धातुमात्रादण्प्रत्यये कृते, 'कुम्भकार:' 'काण्डलावः' इत्या- . दीनां बहूनां शब्दानामनुशासनमुपलभ्यते। एवम्, 'आतोऽनुपसर्गे कः' । (पा० सू० ३।२।१८) इत्येकेन विशेषलक्षणेनाकारान्ताद्धातोः कप्रत्यये कृते, 'धान्यवः' 'धनदः' इत्यादीनां बहूनां शब्दानामनुशासनमुपलभ्यते। बृहस्पतिरिन्द्रायेति प्रतिपदपाठस्याशक्यत्वप्रतिपादनपरोऽर्थवादः । - उदाहरण के लिए, कर्मण्यण ( ३।२।१ अर्थात् कर्म के उपपद में रहने पर धातु से अण् प्रत्यय होता है )-इस अकेले सामान्य सूत्र ( लक्षण ) से उन सभी धातुओं से, जिनके उपपद में कोई कर्म हो, अण् प्रत्यय किया जाता है तथा कुम्भकारः (कुम्भं करोति, कुम्भ +Vs+ अण् ), काण्डलावः ( काण्डं लुनाति, काण्ड + Vलू + अण् ) इत्यादि बहुत से शब्दों का अनुशासन अर्थात् संस्कार पाया जाता है। उसी तरह, आतोऽनुपसर्गे कः ( ३।२।१८ अर्थात् यदि उपसर्ग उपपद में न रहे तो आकारान्त धातु के बाद क प्रत्यय होता है )-इस अकेले ही विशेष सूत्र के आकारान्त धातु के बाद क प्रत्यय किया जाता है तथा धान्यदः (धान्यं ददाति, धान्य + /दा+क), धनदः (धनं ददाति, धन +/दा +क) इत्यादि बहुत-से शब्दों का अनुशासन पाया जाता है । 'बृहस्पति ने इन्द्र को पढ़ाया'
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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