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________________ ४९४ सर्वदर्शनसंग्रहेबिना ) वैकल्पिक 'कर्तरि षष्ठी' मानते हैं। उदाहरण ऊपर दिया ही है --शब्दानुशासनम् ! इसका परिणाम यह हुआ कि 'उभयप्राप्ती कर्मणि' का नियम असफल हो गया और इसीलिए 'कर्मणि च' सूत्र समास का निषेध नहीं कर सकता। ] ____ या ऐसा करें कि यहाँ 'शेषे ( = षष्ठी शेषे २।३।५० )' सूत्र से षष्ठी मान [ और समास-कार्य करें ] । ऐसा करने पर कोई प्रश्न खड़ा नहीं हो सकेगा । अब कुछ लोग शंका कर सकते हैं कि यदि ऐसा करेंगे तो सभी स्थानों में 'शेषे' सूत्र से होनेवाली षष्ठी ही आसानी से कह दी जायगी और षष्ठी समास का निषेध करनेवाले सूत्र ( पा० सू० २।२।१० से २।२।१६ तक ) निरर्थक हो जायेंगे । ठीक कहते हैं किन्तु ऐसी बात नहीं। भर्तृहरि ने अपने वाक्यपदीय में दिखलाया है कि इन सूत्रों का उपयोग स्वर ( Accent ) का विचार करने के समय होता है। विशेष—स्व और स्वामी का सम्बन्ध या ऐसा ही दूसरा सम्बन्ध अन्य कारकों में नहीं आ सका है इसलिए वैसी स्थिति में अवशिष्ट सम्बन्धों का निर्देश ‘शेष' के द्वारा होता है और उसमें षष्ठी होती है। जैसे-राज्ञः पुरुषः । पशोः पादः । वास्तव में कर्म आदि कारकों में भी कर्मत्व आदि नहीं हो तभी शेष-षष्ठी होती है, जैसे-ग्रामस्य गच्छति । इसे ही शास्त्रीय-शब्द में शेषलक्षणा षष्ठी कहते हैं । यहाँ कर्म की विवक्षा ही नहीं है अतः 'उभयप्राप्तौ' वाला नियम लगेगा ही नहीं कि समास का निषेध हो । लेकिन हर जगह 'शेष' का प्रयोग करने से बड़ी अराजकता छा जायगी। सभी शब्द समास के लिए 'शेषे' के अधिकार में आने लगेंगे तथा समास-निषेधक सूत्रों की पूछ ही नहीं होगी। 'गवां दोहः' में कर्मत्व को विवक्षा नहीं है । ऐसा कहकर 'शेषे षष्ठी' मानते हुए 'गोदोहः' समास बना देंगे तब समास के निषेध का लाभ ही क्या हुआ ? नहीं, निषेध-सूत्रों की आवश्यकता है और वह है स्वर-विचार में। 'गोदोहः' शब्द में यदि षष्ठी शेषे' मानकर समास कर दें तो 'समासस्य' ( पा० सू० ६।१।२२३ ) सूत्र के अनसार यह पद अन्तोदात्त हो जायगा और यही होता भी है। उक्त सत्र का अपवाद सूत्र ‘गतिकारकोपपदात्कृत्' ( ६।२।१३९ ) प्रवृत्त नहीं होता है क्योंकि इसका पूर्वपद 'गो' न तो गति-संज्ञक है और न कारक ही। स्मरणीय है 'गो' यद्यपि कर्मकारक है परन्तु कर्मत्व अविवक्षित ( अनीप्सित ) होने से उसमें कारकता रही ही नहीं। दूसरे शब्दों में, 'षष्ठी शेषे' से होनेवाली षष्ठी में कारण नहीं रहता। सूत्र का अर्थ है गति, कारक या उपपद यदि पूर्वपद में हो तो उत्तर-पद के कृदन्त शब्द में प्रकृतिस्वर होता है। समास का निषेध न करे तो 'गो' शब्द में 'कर्मणि षष्ठी' होने पर भी 'दोह' शब्द के साथ इसका समास हो जायग । तब पूर्वपद 'गो' कारक हो जायगा । (:: कर्मणि षष्ठी हुई है ) । इस दशा में उत्तर-पद ‘दोहः' घञ् प्रत्यय से बना है अतः 'नित्यादिनित्यम्' (पा० सू० ६।१।१९७ ) के अनुसार यह शब्द आधुदात्त होगा। तो समास में-गोदोर्हः ऐसा हो
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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