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पाणिनि-दर्शनम्
में षष्ठी का समास-निषेध किया गया है, वह 'उभयप्राप्ती कर्मणि' सूत्र से होने वाली षष्ठी का ही है । काशिका - ' उभयप्राप्ती कर्मणि' इति षष्ठ्या इदं ग्रहणम् ( पृ० १०१ ) । किसी अन्य सूत्र से यदि कर्म में षष्ठी हो तो उसका समास- निषेध नहीं होता । ]
किन्तु यहाँ पर 'कर्तृकर्मणोः कृति' ( पा० सू० २।३।६५ ) सूत्र से कृदन्त के योग में कर्ता और कर्म में ( एक बार में एक के ही प्रयोग में ) षष्ठी विभक्ति होती है, अतः कृत् प्रत्यय के प्रयोग से सम्बद्ध षष्ठी यहाँ होगी । [ फल यह निकला कि 'उभयप्राप्तौ कर्मणि' से षष्ठी नहीं हुई है कि समास न हो; यहाँ तो 'कर्तृकर्मणोः कृति' से षष्ठी हुई है, अतः समास होने में कोई बाधा नहीं । ] अतः 'इध्मप्रव्रश्चन' ( लकड़ी का चीरना ), 'पलाश - शातन' ( पलाश का काटना ) आदि शब्दों की तरह समास होगा । [ इध्मस्य प्रव्रश्चनः = इध्मप्रव्रश्चनः । 'इघ्म' में कर्मणि षष्ठी है, परन्तु 'कर्तृकर्मणोः कृति' से हुई है, अत: समास हुआ । उसी प्रकार 'शब्दानामनुशासनम् = शब्दानुशासनम्' भी होगा । ' षष्ठी' ( पा० सू० २।२१८ ) पर वार्तिक भी है— कृद्योग षठी समस्यत इति वाच्यम् अर्थात् 'कर्तृकर्मणोः कृति' सूत्र से होनेवाली षष्ठी विभक्ति से युक्त शब्द का समास दूसरे समर्थ सुबन्त के साथ हो सकता है ।
कर्तर्य्यपि षष्ठी भवतीति केचित् ब्रुवते । अत एवोक्तं काशिकावृत्तौ ( २।३।६६, पृ० १२२ ) - केचिदविशेषेणैव विभाषामिच्छन्ति, शब्दानामनुशामनमाचार्येणाचार्यस्य वेति ।
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अथवा शेषलक्षणेयं षष्ठी । तत्र किमपि चोद्यं नावरतरत्येव । यद्येवं तहि शेषलक्षणायाः षष्ठ्याः सर्वत्र सुवचत्वात् षष्ठीसमासप्रतिषेधसूत्राणामानर्थक्यं प्राप्नुयादिति चेत् — सत्यम् । तेषां स्वरचिन्तायामुपयोगो वाक्यपदीये हरिणा प्रादशि ।
कुछ लोग कहते हैं कि कर्ता में भी षष्ठी होती है । इसलिए काशिका - वृत्ति में कहा - कुछ आचार्य बिना किसी भेद-भाव के यहाँ पर विकल्प चाहते हैं जैसे - शब्दानामनुशासनम् आचार्येण, आचार्यस्य वा । [ 'उभयप्राप्तौ कर्मणि' सूत्र पर एक वार्तिक है कि यह नियम ( कर्म में ही षष्ठी होने का नियम ) दो प्रत्ययों - अक ( इका ) और अ ( आ ) — के बाद स्त्री प्रत्यय लगने पर लागू नहीं हो सकता । जैसे- भेदिका देवदत्तस्य काष्ठानाम् । यहाँ / भद् + ण्वुल् ( अक ) + टाप् होने पर 'भेदिका' शब्द बना है; देवदत्तकर्ता है, काष्ठ कर्म । दोनों में षष्ठी हो गई है । इसी प्रकार, 'चिकीर्षा देवदत्तस्य काष्ठस्य' इस उदाहरण में / कृ + सन् + अ + टाप से 'चिकीर्षा' बना और उसके कर्ता, कर्म दोनों में षष्ठी हुई है । स्त्रीलिङ्ग के अन्य प्रत्ययों के साथ षष्ठी होना ( कर्तरि षष्ठी होना ) वैकल्पिक है - विचित्रा सूत्रस्य कृतिः पाणिनेः पाणिनिना वा । अब इसके बाद कहा गया है कि कुछ लोग बिना भेद-भाव किये हुए ( स्त्रीलिंग आदि का विचार किये ही