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सर्वदर्शनसंग्रहे
( २. 'अथ शब्दानुशासनम्' का अर्थ ) तथा हि पतञ्जलेभगवतो महाभाष्यकारस्येदमादिमं वाक्यम्-'अथ शब्दानुशासनम्' ( पात० म० भा० १।१।१ ) इति । अस्यार्थः-अथेत्ययम् शब्दोऽधिकारार्थः प्रयुज्यते। अधिकारः प्रस्तावः। प्रारम्भ इति यावत् । शब्दानुशासनशब्देन च पाणिनिप्रणीतं व्याकरणशास्त्रं विवक्ष्यते । शब्दानुशासनमित्येतावत्यभिधीयमाने सन्देहः स्यात् । कि शब्दानुशासनं प्रस्तूयते न बेति । तथा मा प्रसाङ्क्षीदित्यथशब्दं प्रायुक्त ।
महाभाष्य के रचयिता भगवान् पतंजलि का यह पहला वाक्य है-अथशब्दानुशासनम् अर्थात् अब ( यहाँ से ) शब्दों का अनुशासन ( Exposition ) आरम्भ होता है ( पा० म० भा० १।१।१ )।'
इसका अर्थ इस प्रकार है-'अथ' शब्द अधिकार के अर्थ में प्रयुक्त होता है । अधिकार का अर्थ है प्रस्तुत करना या आरम्भ करना। 'शब्दानुशासन' शब्द से पाणिनि के द्वारा लिखा हुआ व्याकरण शास्त्र समझा जाता है । यदि केवल 'शब्दानुशासनम्' इतना ही कहते तो सन्देह रह ही जाता कि शब्दानुशासन प्रस्तुत किया जा रहा है या नहीं ? ऐसा ( ऐसे सन्देह का ) प्रसंग न उठे इसलिए 'अथ' शब्द का प्रयोग किया गया है।
विशेष-अपने प्रथम वाक्य को व्याख्या भाष्यकार स्वयं कर रहे हैं। ऐसा न सोचें कि व्याख्या न करने के कारण वह वाक्य किसी दूसरे का लिखा हुआ है। कैयट भी लिखते हैं-स्ववाक्यं व्याख्यातुं तदवयवमथशब्दं तावद् व्याचष्टे । 'अथ' शब्द का प्रयोग यदि न करें तो केवल 'शब्दानुशासनम्' कहना पड़ेगा। ऐसी दशा में वाक्य की पूर्ति करने के लिए अन्वय के योग्य क्रिया-पद का अध्याहार करना पड़ेगा। अब कौन-सी क्रिया आवे ? 'प्रस्तूयते' या 'स्तूयते' या क्या ? अब शब्द का प्रयोग होते ही यह सहल हो जाता है । अथ का अर्थ है प्रारम्भ । बस, प्रस्तुयते' क्रिया का अध्याहार कर लेंगे । अन्य क्रियाओं का अध्याहार करने से 'अथ' के साथ संगति नहीं बैठती।
अथ शब्दप्रयोगबलेनार्थान्तरव्युदासेन प्रस्तूयत इत्यस्याभिधीयमानत्वात् । अनेन हि वैदिकाः शब्दाः 'शं नो देवीरभिष्टये ( अथर्व सं० १११, ऋ० सं० १०।९।४ ) इत्यादयस्तदुपकारिणो लौकिकाः शब्दाः 'गौरश्वः पुरुषो हस्ती शकुनिः' इत्यादयश्चानुशिष्यन्ते, व्युत्पाद्य संस्क्रियन्ते प्रकृतिप्रत्ययविभागवत्तया बोध्यन्त इति शब्दानुशासनम् । १. भाष्य का लक्षण
सूत्रार्थो वर्ण्यते यत्र वाक्यः सूत्रानुसारिभिः । स्वपदानि च वर्ण्यन्ने भाष्यं भाष्यविदो विदुः ॥