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________________ सर्वदर्शनसंपहेधर्म । वादी कहता है-शब्द अनित्य है क्योंकि कृतक है, जैसे घट । प्रतिवादी द्वारा खण्डन होता है-घट अनित्य है क्योंकि कृतक है, जैसे शब्द । प्रतिवादी का तर्क है कि यदि शब्द की अनित्यता का प्रदर्शन कर रहे हैं तो उदाहरण के रूप में दिये गये घट का प्रदर्शन क्यों नहीं करते? दोनों ही तो कृतक हैं । शब्द का उत्पादन तालु, ओष्ठ आदि के व्यापार से होता है जब कि घट का उत्पादन कुम्भकार आदि के व्यापार से होता है। पक्ष और उदा-- हरण दोनों की वर्ण्यता ( Questionable character ) की समानता दिखलाई जाती है। (६) अवर्ण्यसम जाति का अर्थ है कि जब वादी के उदाहरण पर यह आरोप लगाते हुए उसके वाद का खण्डन करें कि पक्षी का धर्म उदाहरण के धर्म की तरह ही अवर्णनीय या सिद्ध है । अवर्ण्यसम में जो वादी और प्रतिवादी के तर्क हैं उनमें जब प्रतिवादी यह कहे कि यदि दृष्टान्त के रूप में दिये गये घट में आप अनित्यता को अवर्ण्य या सिद्ध मानते हैं तो शब्द की अनित्यता भी अवर्ण्य या सिद्ध क्यों नहीं मानते ? दोनों ही तो उत्पन्न हैं । उसका तात्पर्य यह है कि अनित्यता सिद्ध करने के लिए किसी वाद को व्यर्थ माना जाय । इस प्रकार पक्ष और दृष्टान्त में अवर्ण्यता या सिद्धि को लेकर समानता है । (७) विकल्पसम जाति वह है जिसमें प्रतिवादी किसी वाद का खण्डन करने के लिए पक्ष और दृष्टान्त ( उदाहरण ) पर वैकलिक धर्मों का आरोप करे । वादी के उपर्युक्त वाद पर प्रतिपक्षी कहता है-शब्द नित्य और निराकार है क्योंकि यह उत्पन्न होता है, जैसे घट ( जो अनित्य और साकार है ) । प्रतिवादी का कहना है कि घट और शब्द दोनों कृतक हैं किन्तु एक साकार है दूसरा निराकार । इसी सिद्धान्त पर एक ( घट) अनित्य तथा दूसरा ( शब्द ) नित्य क्यों नहीं माना जाय ? दोनों पक्षों के तर्कों की समानता पक्ष और दृष्टान्त पर आरोपित वैकल्पिक धमों को लेकर दिखलाई गई है। (८) साध्यसम जाति वह है जिसमें पक्ष और दृष्टान्त के पारस्परिक सम्बन्ध को लेकर किसी वाद का खण्डन हो। वादी का कथन है-शब्द अनित्य है क्योंकि यह कृतक है, जैसे घट । प्रतिवादी कहता है-घट अनित्य है क्योंकि यह कृतक है, जैसे शब्द । शब्द और घट दोनों कृतक होने के कारण सिद्धि की अपेक्षा रखते हैं । शब्द को घट के दृष्टान्त से अनित्य सिद्ध करते हैं, घट को शब्द के दृष्टान्त से । घट को शब्द के दृष्टान्त से श्रावण भी सिद्ध कर सकते हैं। फल यह होगा कि निर्णय नहीं होगा-न तो नित्यता सिद्ध होगी न अनित्यता। अतः पक्ष और दृष्टान्त में अन्योन्याश्रय दोष लगाकर निर्णय रोक लेते हैं। (९) प्राप्तिसम जाति उसे कहते हैं जिसमें हेतु और साध्य के सहचार-सम्बन्ध पर आधारित वाद का विरोध उसी प्रकार के वाद से किया जाय । ऐसी स्थिति में चूकि हेतु साध्य से पृथक् करके समझा नहीं जा सकता, इसलिए जाति प्राप्ति ( सहचार ) सम कहलाती है । वादी पर्वत में अग्नि सिद्ध करने के लिए तर्क करता है-पर्वत अग्नि से युक्त है क्योंकि वहाँ धूम है, जैसे रसोईघर में । अब प्रतिवादी कहता है-पर्वत धूमवान् है क्योंकि
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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