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________________ अक्षपाद-दर्शनम् ४०९ नित्य सिद्ध करता है । दोनों ओर साधर्म्य के ही उदाहरण हैं । किन्तु प्रतिपक्षी का विरोधपक्ष जाति है क्योंकि अमूर्त ( हेतु ) और नित्य ( साध्य ) में साहचर्य या व्याप्ति होना कोई आवश्यक नहीं । ( २ ) वैधर्म्यसम जाति में वैधर्म्य के उदाहरण से युक्त वाद का विरोध प्रतिपक्षी करता है तथा वह अपने विरोध - पक्ष में वैधर्म्य का ही उदाहरण देता है । वैधर्म्य के उदाहरण की समानता के कारण इसे वैधर्म्यसम कहते हैं । वादी का कथन है— शब्द अनित्य है क्योंकि यह कृतक ( Product ) है, जो अनित्य नहीं, वह कृतक नहीं है, जैसे आकाश । अब प्रतिपक्षी कहता है— शब्द नित्य है क्योंकि यह अमूर्त है, जो नित्य नहीं वह अमूर्त नहीं है, जैसे घट | दोनों स्थानों पर वैधर्म्य के उदाहरण हैं, जिनको लेकर समता है । वादी शब्द और अनित्यहीन आकाश के वैधर्म्य के आधार पर अनित्य सिद्ध करता है जब कि प्रतिपक्षी शब्द और अमूर्तहीन ( मूर्त ) घट के नित्य सिद्ध करता है । प्रतिपक्षी का विरोध करना जाति है दोनों जातियों का उत्तर भी हो सकता है । गोत्व के कारण जैसे गौ की सिद्धि होती है उसी प्रकार हेतु और साध्य का सम्बन्ध भी साधर्म्य या वैधर्म्य से सिद्ध किया जा सकता है और जाति का निवारण हो सकता है ( देखिये ५।१।३ ) । शब्द को वैधर्म्य के आधार पर शब्द को । गौतम का कहना है कि इन (३) उत्कर्षसम जाति उसे कहते हैं जब वादी किसी उदाहरण के आधार पर अपना वाद प्रस्तुत करे और उसका विरोध प्रतिवादी किसी अधिक उत्कृष्ट विशेषणों से युक्त उदाहरण ( Example having additional character ) के आधार पर करे । जैसे; वादी का कथन - शब्द अनित्य है क्योंकि यह कृतक है, जैसे घट | अब प्रतिवादी कहता है-—-शब्द अनित्य तथा मूर्त है क्योंकि यह कृतक है, जैसे घट ( जो अनित्य तथा मूर्त भी है ) । प्रतिवादी का यह तर्क है कि यदि शब्द को घट की तरह अनित्य मानते हैं तो घट ही की तरह वह मूर्त भी है । यदि मूर्त नहीं मानते हैं तो घट की तरह अनित्य भी न मानें । यहाँ दोनों पक्षों के वादों की समता उदाहरण के उत्कृष्ट गुण के आधार पर दिखाई गई है । यह उत्कृष्ट गुण उदाहरण में है तथा पक्ष ( Subject ) पर आरोपित हुआ है । ( ४ ) अपकर्षसम जाति उसे कहते हैं जहाँ वादी के द्वारा दिये गये उदाहरण से युक्त वाद का विरोध प्रतिपक्षी वैसे वाद से करे जिसके उदाहरण में कुछ धर्म का अपकर्ष दिखाया जाय । जैसे वादी के द्वारा दिये गये उपर्युक्त उदाहरण में प्रतिपक्षी कहे कि शब्द अनित्य किन्तु श्राव्य है क्योंकि यह कृतक है, जैसे घट ( जो अनित्य तो है पर अश्राव्य है ) । प्रतिपक्षी का तर्क है कि यदि घट के आधार पर आप शब्द को अनित्य मानते हैं तो घट की तरह ही उसे अश्राव्य भी मानें। यहाँ श्राव्यत्व-धर्म का अपकर्ष दिखलाया गया है । ( ५ ) वर्ण्यसम जाति में वादी के द्वारा दिये गये उदाहरण का विरोध यह कहकर किया जाता है कि उदाहरण का धर्म भी उसी प्रकार प्रदर्शनीय है जिस प्रकार पक्ष का
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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