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________________ औलूक्य दर्शनम् ३५९ है । [ तात्पर्य यह है कि ऊर्ध्वदेश के साथ संयोग करने का हेतु ही उत्क्षेपण नामक कर्म है । ] इसी प्रकार अपक्षेपण आदि की जातियों के भी लक्षण कर लेना चाहिए । विशेष - उत्क्षेपण का अर्थ है ऊपर फेंकना, अपक्षेपण = नीचे फेंकना ( अधोदेश से संयोग का कारण ) । आकुंचन = वस्तुओं का वक्र होना या वस्तु के अवयवों का निकटतर आ जाना । प्रसारण = वस्तुओं का सीधा हो जाना या उनके अवयवों का दूर हो जाना । इन कर्मों के अतिरिक्त सारे कर्म गमन में आते हैं । भाषा-परिच्छेद (७) में कहा गया है भ्रमणं रेचनं स्यन्दनोर्ध्वज्वलनमेव च । तिर्यग्गमनमप्यत्र गमनादेव लभ्यते ॥ तिरछा चलना घूमना-फिरना, खाली करना, प्रवाहित होना, ऊपर की ओर जलना, आदि सारी क्रियाएँ गमन में ही समझी जाती हैं । गमन का क्षेत्र इतना व्यापक हो जाता है कि हमें उत्क्षेपण आदि प्रथम चार कर्मों की पृथक् सत्ता पर भी सन्देह होने लगता है । पर सूत्रकार की स्वतन्त्र इच्छा पर कौन प्रश्न करे ? सामान्यं द्विविधं परमपरं च । परं सत्ता द्रव्यगुणसमवेता । अपरं द्रव्यत्वादि । तल्लक्षणं प्रागेवोक्तम् । विशेषाणामनन्तत्वात् समवायस्य चैकत्वाद् विभागो न सम्भवति । तल्लक्षणं च प्रागेवावादि । सामान्य दो प्रकार का है - पर ( Highest ) और अपर ( Lower ) । पर सामान्य Summum Genus ) तो सत्ता ही है जो द्रव्य और गुण से समवेत है । [ केवल द्रव्य का नाम लेने से द्रव्यत्व अतिव्याप्ति हो जाती, केवल गुण का नाम लेने से गुणत्व में । इसलिए दोनों में समवेत कहा गया है । यह भी कह सकते हैं कि कर्म में भी समवेत होती है, किन्तु दो से ही काम चल जाता है— लक्षणमें तो कम से कम शब्द न होने चाहिए ? ] अपर सामान्य तो द्रव्यत्व आदि हैं जिनके लक्षण पहले ही दिये जा चुके हैं । [ कितने लोग पर, अपर और परापर ये तीन सामान्य मानते हैं । पर तो सर्वोच्च सामान्य है जैसे - सत्ता 1 अपर नीचे का सामान्य है, जैसे— पृथिवीत्व । परापर वह है जो किसी सामान्य की अपेक्षा पर हो, किसी की अपेक्षा अपर, जैसे- द्रव्यत्व पृथिवीत्व की अपेक्षा पर ( ऊपर ) है किन्तु सत्ता की अपेक्षा तो अपर ( नीचे ) है । ] विशेष – अनन्त प्रकार के हैं और समवाय तो एक ही तरह का है, इसलिए इनका विभाजन करना संभव ही नहीं है। जहां तक इनके लक्षणों का प्रश्न है, हम उन्हें पहले ही देख चुके हैं । विशेष - यहाँ पर वैशेषिक दर्शन के आधारभूत पदार्थों का विवेचन समाप्त हो गया । अब इसके कुछ गम्भीर विषयों में माधवाचार्य प्रवेश कर रहे हैं । वे विषय हैं - द्वित्व की
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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