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________________ ३४७ औलूक्य-दर्शनम् करना ( तद्भिन्नत्वे सति तद्तगधर्मवत्त्वम् ) । वैशेषिक लोग भाव पदार्थों का विचार करते समय इन वस्तुओं को कभी नहीं भूलते । (५. छह पदार्थों के लक्षण-द्रव्यत्व और गुणत्व ) तत्र द्रव्यादित्रितयस्य द्रव्यत्वादिजातिर्लक्षणम् । द्रव्यत्वं नाम गगनारविन्दसमवेतत्वे सति, नित्यत्वे सति, गन्धासमवेतत्वम् । गुणत्वं नाम समवायिकारणासमवेतासमवायिकारणभिन्नसमवेतसत्तासाक्षाव्याप्यजातिः । उनमें द्रव्य आदि प्रथम तीन पदार्थों के लक्षण हैं-द्रव्यत्व आदि के सामान्य ( जाति ) से युक्त होना । [ द्रव्य उसे कहते हैं जो द्रव्यत्व-जाति का हो, गुण गुणत्व-जाति का होता है तथा कर्म कर्मत्व-जाति का, इस प्रकार अपने-अपने सामान्य के द्वारा ये लक्षित होते हैं । अब इनके सामान्यों के लक्षण पृथक्-पृथक् नैयायिक-भाषा में दिये जायगे जिसमें प्रत्येक शब्द और विशेषण साभिप्राय रहेगा, उसके अभाव में लक्षण के अशुद्ध हो जाने की सम्भावना है।] द्रव्यत्व का लक्षण-जब आकाश के साथ तथा अरविन्द के साथ अलग-अलग कोई पदार्थ समवेत हो, वह नित्य भी हो तथा गन्ध के साथ समवेत (नित्यरूप से सम्बद्ध, Inherent ) न हो तो उसे ही द्रव्य-सामान्य कहते हैं। [अब इस लक्षण की व्याख्या करें। द्रव्य-सामान्य (द्रव्यत्व ) से द्रव्य का लक्षण किया जाता है। इसलिए इस द्रव्य-सामान्य को समझना आवश्यक है। द्रव्य-सामान्य के लक्षण में तीन टुकड़े हैं-(१) गगन तथा अरविन्द के साथ समवेत होना, ( २ ) नित्य होना तथा ( ३ ) गन्ध के साथ समवेत न होना । गगनारविन्द को वेदान्तियों के समान आकाश का कमल न समझें। यहाँ द्वन्द्वसमास है। द्वन्द्व होने के कारण 'समवेत' शब्द का सम्बन्ध दोनों पदों के साथ होगा। ( द्वन्द्वादी द्वन्द्वमध्ये द्वन्द्वान्ते च श्रूयमाणं पदं प्रत्येकमभिसम्बध्यते ) । द्रव्य का समवाय ( अपरिहार्य, नित्य ) सम्बन्ध गगन-जैसे नित्य द्रव्य से तथा कमल-जैसे क्षणिक द्रव्य के साथ भी है, भले ही सम्बन्ध नित्य है । आकाश तो द्रव्य में है ही, कमल की गणना पृथ्वी में होती है। समूह का सम्बन्ध अपने प्रत्येक व्यक्ति से रहता ही है। दूसरे, द्रव्य का सामान्य नित्य भी है, क्योंकि जाति या सामान्य नित्य होता है। व्यक्ति के विनाश के बाद भी जाति की सत्ता रहती है । अन्त में यह द्रव्यसामान्य गन्ध से असमवेत रहता है, क्योंकि गन्ध गुण है। द्रव्यत्व की वृत्ति गुणों में नहीं होती, द्रव्यों में ही है। अब हम लक्षण के शब्दों की अनिवार्यता पर विचार करें। (१) यदि लक्षण से 'गगन से समवेत रहना' यह विशेषण हटा दें तो पृथिवी-जाति ( पृथिवीत्व ) का भी लक्षण बन जायगा, केवल द्रव्यत्व का लक्षण नहीं रहेगा। दूसरे शब्दों में, पृथिवीत्व में इस लक्षण की अतिव्याप्ति हो जायगी। पृथिवी-सामान्य अरविन्द से समवेत होता है तथा
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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