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________________ ३४६ सर्वदर्शनसंग्रहे कोई भी ऐसा विचारशील व्यक्ति नहीं होगा जो चूहे का सींग ( असिद्ध वस्तु ) का निषेध करने में अपने सारे पाण्डित्य को खर्च करे। [ मूषिक-विषाण प्रत्यक्ष-प्रमाण से ही असिद्ध है, दूसरों की तो बात ही क्या ? इसलिए असिद्ध वस्तु का निषेध करना मूर्खता नहीं तो और क्या है ? ] इस प्रकार दोनों विकल्पों की असिद्धि के कारण 'छह ही' पदार्थ होने का नियम आप नहीं लगा सकते।। [ इस प्रश्न का उत्तर यह होगा- ] ऐसा नहीं कहना चाहिए। यदि आप लोग अन्धकार या किसी ऐसी ही अभावात्मक चीज में सप्तम पदार्थ की कल्पना करते हैं तब तो हम अपने भावात्मक पदार्थों में इसे ले ही नहीं सकते [ क्योंकि भावात्मक पदार्थ में अन्धकार नहीं आ सकता, वह निषेधात्मक है । और हम केवल भावपदार्थों को ही स्वीकार कर रहे हैं ] । यदि दूसरी ओर आप लोग भाव के रूप में सिद्ध शक्ति, सादृश्य आदि को ही सप्तम पदार्थ मानते हैं तो यह सप्तम पदार्थ नहीं, [ वास्तव में हमारे भावात्मक पदार्थों में ही उसकी सत्ता है। ] अधिक विस्तार करना व्यर्थ है। विशेष-पदार्थों की संख्या छह मानने का कारण वे यह बतलाते हैं कि भावात्मक पदार्थ छह ही होंगे। यदि किसी अभावात्मक वस्तु को सातवां पदार्थ मानते हैं तो भाव का प्रतियोगी होने के कारण हमारी परिभाषा ( भावरूप पदार्थ ) में वह पदार्थ नहीं होगा, यदि किसी भावात्मक वस्तु को ही सातवाँ पदार्थ मानते हैं तब तो वह हमारे भावात्मक पदार्थों के बीच ही कहीं-न-कहीं स्थान पा सकेगा। हमारा वर्गीकरण इतना व्यापक ( Exhaustive ) है कि सभी भाव इसमें आ जायंगे, फिर सप्तम पदार्थ की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। किसी प्रकारं छह से अधिक भाव-पदार्थ नहीं। 'षडेव' ( छह ही ) कहने से न केवल सप्तम पदार्थ का निषेध होता है, न केवल भाव का, प्रत्युत सप्तमत्व से विशिष्ट भाव का निषेध होता है । दूसरे शब्दों में यह कहें कि सातवां भाव पदार्थ ही नहीं है। केवल सप्तम पदार्थ तो अन्धकार आदि हैं ही, पर ये भाव तो नहीं हैं । अन्धकार का अर्थ है तेज का अभाव । शक्त और सादृश्य यद्यपि भाव हैं, पर ये केवल भाव हैं, सातवें नहीं है। छह में ही इन्हें स्थान मिलता है। शक्ति के विषय में लोग प्रश्न करते हैं कि जब हथेली पर दाहशक्ति को रोकनेवाले मणि आदि पदार्थ रखे रहते हैं तब अग्नि का संयोग होने पर भी हाथ नहीं जलता। यदि खाली हाथ रहे तो जल जाय । इस.नियम से लगता है कि शक्ति भी कोई अतिरिक्त पदार्थ है। किन्तु ऐसी बात नहीं है। अग्नि का दाह-कारण होना ही शक्ति है ( अग्नेहि प्रति कारणव शक्तिः ) । प्रतिबन्धक का अभाव तो सभी कार्यों में कारण रहता है, जिसे पाश्चात्य तर्कशास्त्र में Negative Conditon कहते हैं, इसलिए अग्नि में ही शक्ति है अतिरिक्त तो कुछ नहीं । आधुनिक विज्ञान में शक्ति को एक पृथक् पदार्थ मानते हैं। सादृश्य भी भिन्न पदार्थ नहीं है, इसका अर्थ है-किसी पदार्थ से भिन्न रहने पर उसमें वर्तमान धर्मों को धारण
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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