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५५२ ५५४-६३०
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६ प्रधान या प्रकृति की सिद्धि १० प्रधान की निरपेक्षता
क. परमेश्वर प्रवर्तक नहीं हैं ११ प्रकृति-पुरुष का सम्बन्ध
१२ प्रकृति की निवृत्ति-प्रलय (१५) पातञ्जल-दर्शन ( योग-दर्शन)
१ योगसूत्र की विषय-वस्तु २ मोक्ष के विषय में शंका और उसका समाधान ३ प्रथम सूत्र की व्याख्या-'अथ' शब्द का अर्थ
क. 'अथ' शब्द मंगल का द्योतक भी नहीं ४ 'अथ' का अर्थ आरम्भ या अधिकार ५ योग के चार अनुबन्ध ६ योग और शास्त्र में सम्बन्ध ७ योग का लक्षण और समाधि क. योग का अर्थ समाधि-आपत्ति
ख. योग का व्यावहारिक अर्थ-चित्तवृत्तिनिरोध ८ चित्त और विषयों का सम्बन्ध
क. परिणाम के तीन भेद ६ योग का अर्थ वृत्तिनिरोध लेने पर आपत्ति
क. समाधान १० समाधि का निरूपण-इसके भेद ११ पांच प्रकार के क्लेश-अविद्या पर आपत्ति
क. आपत्ति का समाधान १२ अस्मिता, राग और देष १३ 'अनुशयी' शब्द की सिद्धि में व्याकरण का योग १४ अभिनिवेश का निरूपण १५ कर्म, विपाक और आशय १६ वृत्तिनिरोध के उपाय-अभ्यास और वैराग्य १७ समाधि-प्राप्ति के लिये क्रिया-योग १८ मंत्र और उनका विवेचन
क. मंत्रों के दश संस्कार १६ ईश्वर प्रणिधान और क्रियायोग का उपसंहार
२० क्रिया ही योग है-शुद्धा सारोपा लक्षणा . क. प्रयोजनमूलक लक्षणा
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