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( ५३ )
१३ प्रामाण्य का उपयोग प्रवृत्ति में नहीं होता - उदयन
क. इसका खण्डन
१४ मीमांसा - दर्शन का उपसंहार
(१३) पाणिनि-दर्शन ( व्याकरण-दर्शन ) १ प्रकृति - प्रत्यय का विभाजन
२ 'अथ शब्दानुशासनम्' का अर्थ
क. 'शब्दानुशासन' पर विचार-विमर्श
३ शब्दानुशासन से प्रयोजन की सिद्धि
४ व्याकरणशास्त्र की विधि - प्रतिपदपाठ नहीं
५ व्याकरण के अन्य प्रयोजन
क. व्याकरण से अभ्युदय की प्राप्ति
६ शब्द ही ब्रह्म है
क. पद-भेद की संख्या
७ स्फोट — नैयायिकों की शंका और उसका समाधान क. स्फोट पर अन्य शंका - मीमांसक
८ मीमांसकों की शंका का उत्तर - स्फोट - सिद्धि
क. स्फोट पर अन्य आपत्तियाँ और समाधान सत्ता ही शब्दों का अर्थ है - पूर्वपक्ष और सिद्धान्त - पक्ष
१० द्रव्य को पदार्थ माननेवालों को विचार
११ जाति और व्यक्ति को पदार्थ मानने वालों का विचार १२ पाणिनि के मत से पदार्थ -- जाति-व्यक्ति दोनों हैं। १३ अद्वैत ब्रह्मतत्त्व की सिद्धि
. १४ व्याकरण से मोक्षप्राप्ति
(१४) सांख्य दर्शन
१ सांख्य दर्शन के तत्त्व २ प्रकृति का अर्थ
३ प्रकृति और विकृति से युक्त तत्त्व
४ केवल विकृति के रूप में वर्तमान तत्त्व
५ प्रकृति - विकृति से रहित पुरुष-तत्त्व
६ सांख्य- प्रमाण - मीमांसा
७ कार्य-कारण-सम्बन्ध पर विभिन्न मत
क. कार्य-कारण-भाव के मतों का खंडन
८ सत्कार्यवाद की सिद्धि
कविवर्तवाद का खंडन
४८५
४८६
४८७
४८९-५२६
४८६
४६०
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४६५
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