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________________ २८४ सर्वदर्शनसंग्रह जपादि है । निराकार का खण्डन करते हुए ये लोग कहते हैं कि निराकार की सेवा मानसिक ही नहीं हो सकती, कायिक और वाचिक की तो बात ही दूर है। निराकार पदार्थ को मन (बुद्धि ) अपना विषय बना ही नहीं सकता, क्योंकि विषय बनाने का अर्थ है वस्तु के आकार के समान ही बुद्धि में आकार ग्रहण करना, जो निराकार वस्तु के साथ होना असम्भव ही है । वुद्धि की पकड़ में न आने के कारण वाचिक स्तोत्रपाठ भी नहीं होगा। कायिक सेवा तो निराकार की हो ही नहीं सकती । ___ एतच्च कृत्यपञ्चकं शुद्धाध्वविषये साक्षाच्छिवकर्तृकं, कृच्छाध्वविषये त्वन्तादिद्वारेणेति विवेकः । तदुक्तं श्रीमत्करणे शुद्धेऽध्वनि शिवः कर्ता प्रोक्तोऽनन्तोऽहिते प्रभोः ॥ इति । एवं च शिवशब्देन शिवत्वयोगिनां मन्त्रमन्त्रेश्वरमहेश्वरमुक्तात्मशिवानां सवाचकानां शिवत्वप्राप्तिसाधनेन दीक्षादिनोपायकलापेन सह पतिपदार्थे संग्रहः कृत इति बोद्धव्यम् । तदित्थं पतिपदार्थो निरूपितः। ___ इन पाँच कृत्यों का सम्पादन, शुद्ध-मार्ग के विषय में साक्षात् शिव के ही द्वारा होता है, यदि कृच्छ ( कृष्ण या अशुद्ध या अहित ) मार्ग की चर्चा हो तो अनन्त आदि अधिकारियों के द्वारा इनका सम्पादन होता है—यही पार्थक्य है। जैसा कि श्रीमत् करण ( चौथे आगम ) में कहा है-'शुद्ध मार्ग में शिव ही कर्ता कहलाता है और अहित मार्ग में शिव के [प्रयोज्य रूप में विख्यात ] अनन्त कर्ता हैं।' इस प्रकार यह समझ लें कि 'शिव' शब्द के द्वारा, शिवत्व से सम्बद्ध सभी पदार्थ जैसे मन्त्र, मन्त्रेश्वर, महेश्वर, मुक्त आत्मा, शिव-इन सभी का, शैवदर्शन के प्रवचनकर्ताओं का तथा शिवत्व की प्राप्ति करानेवाले साधन, जैसे दीक्षादि उपाय समूह, का संग्रह पतिपदार्थ में ही हो जाता है। इस तरह पति-पदार्थ का निरूपण समाप्त हुआ । विशेष-उपसंहार-वाक्य में 'पति' पदार्थ की व्याप्ति पर विचार किया गया है। ऊपर कह चुके हैं कि पति का अर्थ शिव है, किन्तु अब विश्लेषण करने पर उसका क्षेत्र कुछ बड़ा मालूम पड़ता है । शिवत्व-धर्म से जिन पदार्थों का सम्बन्ध है वे सभी (शिवत्वयोगी) पदार्थ पति के अन्तर्गत हैं। वे हैं-पांचों मन्त्र, मण्डली आदि मन्त्रों के ईश्वर, महेश्वर अर्थात् विद्य श्वर (जिनका निरूपण तुरत ही होनेवाला है ), मुक्त आत्माए तथा स्वयं शिव पदार्थ । मन्त्र से जीवविशेष का बोध होता है जिनका वर्णन विद्य श्वरों के साथ होगा। यही नहीं, इन पदार्थों के वाचक शब्द या आचार्य भी इसी 'पति' पदार्थ के अन्तर्गत हैं। शिवत्व-प्राप्ति करानेवाले साधन, जैसे-दीक्षा आदि सारे उपाय-समह भी पति ही हैं। अत: पति का क्षेत्र बहुत व्यापक है। उसके अनन्तर 'पशु' पदार्थ का निरूपण होगा।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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