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________________ शेव-दर्शनम् २८३ अन्त्रयापि ७. तद्वपुः पञ्चभिर्मन्त्रैः पञ्चकृत्योपयोगिभिः । ईशतत्पुरुषाघोरवामाधर्मस्तकादिमत् ॥ इति । ननु पञ्चववक्त्रस्त्रिपञ्चदृगित्यादिनागमेषु परमेश्वरस्य मुख्यत एव शरीरेन्द्रियादियोगः श्रूयत इति चेत्-सत्यम्, निराकारे ध्यानपूजाद्यसम्भवेन भक्तानुग्रहकारणाय तत्तदाकारग्रहणाविरोधात् । दूसरी जगह भी कहा है-'उसका शरीर पाँच कृत्यों ( अनुग्रह, तिरोभाव, संहार, पालन, सृष्टि ) के उपयोग में आनेवाले पाँच मंत्रों से बना है जो ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वाम आदि के द्वारा मस्तकादि अवयवों का है।' [ इनमें ईशानमन्त्र अनुग्रह के लिए, तत्पुरुष-मन्त्र तिरोभाव के लिए, अघोर-मन्त्र संहार के लिए, वामदेव-मंत्र पालन के लिए तथा सद्योजात-मंत्र सृष्टि के लिए उपयोगी है।] ____ अब कोई प्रश्न कर सकता है कि आपके आगमों में ही तो 'पाँच मुहों से युक्त' ‘पन्द्रह आँखों से युक्त' आदि विशेषणों से परमेश्वर के मुख्यत: शरीर, इन्द्रिय आदि का सम्बन्ध सुनते हैं [ फिर उसे सशरीर मानने में क्या आपत्ति है ? ] ठीक है, निराकार ईश्वर का ध्यान करना, पूजा करना आदि असम्भव है इसलिए भक्तों पर अनुग्रह करने वाले परमेश्वर के लिए उन आकारों को धारण करने में विरोध की कोई बात नहीं । तदुक्तं श्रीमत्पौष्करे-- ८. साधकस्य तु रक्षार्थं तस्य रूपमिदं स्मृतम् । इति । अन्यत्रापि आकारवांस्त्वं नियमादुपास्यो न वस्त्वनाकारमुपैति बुद्धिः ॥ इति । कृत्यपञ्चकं च प्रपञ्चितं भोजराजेन ९. पञ्चविधं तत्कृत्यं सृष्टिस्थितिसंहारतिरोभावः। __तद्वदनुग्रहकरणं प्रोक्तं सततोदितस्यास्य ।। इति । जैसा कि श्रीमान् पुष्कर के ग्रन्थ में लिखा है-'साधक की रक्षा के लिए उसही परमेश्वर का ऐसा रूप माना जाता है ।' दूसरी जगह भी कहा गया है-'तुम आकारवान् हो, नियम से उपासना करने के योग्य हो क्योंकि निरकार वस्तु का ग्रहण हमारी बुद्धि नहीं कर सकती ।' [ यह भगवान के समक्ष की गई भक्त की प्रार्थना का खण्ड है ] । भोजराज ने गाँच कृत्यों का निरूपण इस प्रकार किया है--'उस ( परमेश्वर ) के कृत्य पाच प्रकार के होते हैं--सृष्टि, स्थिति, महार, तिरोभाव तथा अनुग्रह करना, ये उस निरनर जागरूक रहनेवाले परमेश्वर के कुत्य है।' विशेष --उआसना का अर्थ सेवा । हमके कायिक, वाचिक और मानसिक तीन भेद हैं । कायिक का अर्थ है पाद्य, अर्घा, स्नान, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पंचोपचार या पोड़शा चार से पूजा । वाचिक का अर्थ स्तोत्रपाठ करना है। मानसिक का अर्थ ध्यान,
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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