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________________ २८९ २९२ २९४ २६६ २९८-३२१ २६८ ३०२ ३०५ ३०८ ३१० ३११ ३१२ mimr ख. प्रलयाकल जीव के दो भेद ग. 'सकल' जीव के भेद ६ 'पाश' पदार्थ का निरूपण ७ उपसंहार (८) प्रत्यभिज्ञा-दर्शन ( काश्मीरी शेव-दर्शन) १ प्रत्यभिज्ञा-दर्शन का स्वरूप २ प्रत्यभिज्ञा-दर्शन का साहित्य ३ प्रथम सूत्र की व्याख्या क. 'अपि' और 'उप' शब्दों के अर्थ ४ प्रत्यभिज्ञा के प्रदर्शन की आवश्यकता ५ ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति ६ वस्तुओं का प्रकाशन-आभासवाद ७ ईश्वर की इच्छा से संसारोत्पत्ति ८ उपादान कारण और पदार्थों की उत्पत्ति ९ विभिन्न प्रश्न-जीव और संसार का सम्बन्ध क. प्रमेय को लेकर बद्ध और मुक्त में भेद १. प्रत्यभिज्ञा की आवश्यकता-अर्थक्रिया में भेद ११ उपसंहार (९) रसेश्वर-दर्शन ( आयुर्वेद-दर्शन ) १ रस से जीवन्मुक्ति--पारद और उसका स्वरूप २ जीवन्मुक्ति की आवश्यकता ३ हर-गौरी की सृष्टि-पारद, अभ्रक ४ रस की सामर्थ्य से दिव्य-देह की प्राप्ति ५ दो प्रकार के कर्म-योग ६ पारद के तीन स्वरूप-मूछित, मृत और बद्ध ७ रस के अष्टादश संस्कार ८ देहवेध और उसकी आवश्यकता ६ जीवितावस्था में मुक्ति–देहवेध के विषय में शंका १० जीवितावस्था में मुक्ति-एक वाद ११ शरीर की नित्यता-इसके प्रमाण १२ पारद-रस के सेवन से जरामरण से मुक्ति १३ पारद-लिंग की महिमा ३१७ ३१८ ३२१ ३२२-३३५ ३२२ س ३२३ ३२४ ३२६ ३२६ ३२७ ३२८ ३२९ ३३० ३३० س ३३२ ३३३ ३३३
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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