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________________ नकुलीश-पाशुपत-दर्शनम् २५५ विशेष-वैष्णव-दर्शन में मुक्त पुरुष को ईश्वर का दास का रूप देते हैं । मुक्त होने पर भी दासता ही रह गई तो मुक्ति का अर्थ ही क्या रहा ? मुक्ति तो वह है जो सर्वोच्च पद पर पहुंचा दे। इसलिए माहेश्वर-दर्शन में मुक्त को साक्षात् ईश्वर ही माना जाता है। ____ माहेश्वर-सम्प्रदाय में बहुत से अवान्तर भेद हैं । धार्मिक दृष्टि से इनके चार भेद हैं—पाशुपत, शैव, कालामुख और कापालिक, जिनके मूलग्रन्थ शैवागम कहलाते हैं। यह आगम वैदिक और अवैदिक दोनों हैं। माहेश्वर-सम्प्रदाय में दार्शनिक दृष्टिकोण से भी चार भेद हैं-पाशुपतदर्शन (जिसका प्रचार गुजरात और राजपूताना में था ), शैवदर्शन ( तमिल देश में ), वीरशैवदर्शन ( कर्नाटक ) तथा प्रत्यभिज्ञादर्शन या त्रिक या स्पन्द ( कश्मीर )। पाशुपत-दर्शन के संस्थापक नकुलीश ( या लकुलीश ) थे। शिवपुराण में 'कारवण-महात्म्य' से पता चलता है कि भृगुकच्छ के पास कारबन नामक स्थान में इनका जन्म हुआ था। नकुलीश की मूर्तियाँ राजपूताना और गुजरात में बहुत मिलती हैं । इन मूर्तियों में सिर केश से ढंका रहता है, दाहिने हाथ में बीजपूर का फल तथा बाएं में लगुड़ ( लाठी ) रहता है। लगुड़ धारण करने के कारण ही इन्हें लगुडेश>लकुलीश >नकुलीश कहते हैं भगवान शंकर के १८ अवतारों में लकुलीश प्रथम हैं । ऐतिहासिक दृष्टि से इनका समय विक्रम संवत् के आरम्भ होने के समय का है। पाशुपतों और न्यायवैशेषिक में घना सम्बन्ध है । गुणरत्न ने तो नैयायिकों को शैव तथा वैशेषिकों को पाशुपत कहा भी है । भारद्वाज उद्योतकर ( न्यायवार्तिक के रचयिता ) अपने को 'पाशुपताचार्य' कहते हैं। पाशुपतों का मूल सूत्रग्रन्थ 'माहेश्वररचित पाशुपतसत्र' अनन्तशयन ग्रन्थमाला में कौण्डिन्यरचित 'पञ्चार्थ भा-य' के साथ प्रकाशित हुआ है जिसे राशीकरभाष्य या कौण्डिन्यभाष्य भी कहते हैं। पाशुपत-दर्शन की मूल भित्ति पाँच पदार्थों-कार्य, कारण, योग, विधि और दुःखान्त–के विवेचन पर आधारित है। इसका विवरण हमें आगे प्राप्त होगा। शैवदर्शन के सांगोपांग विवेचन के लिए देखें--डा० यदुवंशी का प्रबन्ध-ग्रन्थ 'शैवमत' (बि० राष्ट्र० परि० पटना से प्रकाशित )। _ 'पाशुपत' शब्द पशुपति ( = शिव ) से बना है। पशु सभी प्राणियों को कहते हैं। लिङ्गपुराण में कहा है ब्रह्माद्याः स्थावरान्ताश्च देवदेवस्य शूलिनः । पशवः परिकीय॑न्ते समस्ताः पशुवर्तिनः ॥ जिस प्रकार हमारे लिए गाय, भैंस आदि पशु हैं उसी प्रकार महेश्वर के लिए सारे प्राणिमात्र पशु हैं क्योंकि सबों में ज्ञान का अभाव है, पशु की तरह आचरण है। इन पशुओं के पति महादेव हैं, अतः वे पशुपति कहलाते हैं। जीवों की परवशता पर शेक्सपीयर का कहना है
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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